असम अपने लोकप्रिय गायक ज़ुबिन गर्ग को अंतिम विदाई दे रहा है. उनके पार्थिव शरीर को अंतिम संस्कार के लिए गुवाहाटी के सोनापुर स्थित कमरकुची एनसी गाँव में लाया गया है. इस दौरान राज्य में बाज़ार बंद रखे गए हैं.
उनका दाह संस्कार पूरे राजकीय सम्मान के साथ हो रहा है. उनकी इच्छा के अनुसार अंतिम संस्कार में शामिल सैकड़ों प्रशंसक 'मायाबिनी रातिर बुकुत..' गीत गा रहे हैं.
ज़ुबिन हमेशा कहा करते थे कि उनकी कोई धर्म-जाति नहीं है वो केवल लोगों से प्यार करते हैं.
असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा के साथ केंद्रीय मंत्री किरेन रिजिजू, सर्बानंद सोनोवाल, पवित्र मार्घेरिटा समेत कई जातीय संगठनों के नेता ज़ुबिन को विदाई देने पहुंचे हैं.
इससे पहले ज़ुबिन के पार्थिव शरीर को रविवार से अर्जुन भोगेश्वर बरुआ स्पोर्ट्स कॉम्प्लेक्स में प्रशंसकों, और शुभचिंतकों के अंतिम दर्शन के लिए रखा गया था.
ज़ुबिन गर्ग की अंतिम यात्रा शुरू करने से पहले मंगलवार सुबह उनके शव को नए सिरे से पोस्टमार्टम के लिए गुवाहाटी मेडिकल कॉलेज ले जाया गया.
असम के मुख्यमंत्री हिमंत ने मीडिया के समक्ष घोषणा की है कि राज्य सरकार ज़ुबिन गर्ग के सम्मान में दो विशाल स्मारक बनाएगी.
पिछले चार दिनों से असम के लोग अपने प्रिय गायक ज़ुबिन गर्ग के निधन पर शोक में डूबे हुए हैं.
असमिया संगीत जगत के सुपरस्टार ज़ुबिन गर्ग का बीते शुक्रवार को 52 साल की उम्र में सिंगापुर में निधन हो गया था. वह नॉर्थ ईस्ट फेस्टिवल में परफॉर्म करने सिंगापुर गए हुए थे.
ज़ुबिन के निधन की खबर आने के बाद राज्य भर से उनके प्रशंसकों ने गुवाहाटी के काहिलीपाड़ा स्थित उनके घर के सामने पहुंचना शुरू कर दिया था.
महज कुछ ही घंटों के भीतर ज़ुबिन के घर के बाहर सैकड़ों लोगों की अनियंत्रित भीड़ जमा हो गई थी. इस भीड़ को काबू करने के लिए पुलिस को कई स्तर के बंदोबस्त करने पड़े थे.
शाम होते-होते गुवाहाटी समेत समूचे राज्य में बाज़ार-दुकानें बंद हो गईं.
'हमें ज़ुबिन दा चाहिए'
दूर-दराज़ से आए ज़ुबिन के कुछ युवा प्रशंसक उनके शव के गुवाहाटी पहुंचने के इंतजार में सड़कों पर ही रात बिताते नज़र आए.
गुवाहाटी में डिलीवरी बॉय की नौकरी करने वाले 28 साल के पंकज ने जब से ज़ुबिन गर्ग के निधन की ख़बर सुनी, तब से वे न काम पर गए और न ही घर लौटे.
वो जज़्बाती हो कर कहते हैं, "ज़ुबिन दा नहीं मर सकते. उनके बिना सबकुछ शून्य है."
एक अन्य प्रशंसक राजीव कहते हैं, "इस दुनिया में ज़ुबिन दा जैसा कोई नहीं बन सकता."
आंख में आंसू लिए जुबिन के कई प्रशंसक चिल्ला चिल्लाकर कह रहे थे, "ज़ुबिन दा वापस लौट आइए." "हमें ज़ुबिन दा चाहिए."
पिछले कुछ समय से ज़ुबिन अपने संगीत कार्यक्रमों में एक खास असमिया गाने "मायाविनी रातिर बुकुत...देखा पालु तोमर छवि" का ज़िक्र करते हुए कहते थे कि जब मैं मरूंगा तो समूचे असम में यही गाना बजना चाहिए.
बीते चार दिनों से समूचे प्रदेश में हर जगह यही गाना बज रहा है. यहां तक कि सिंगापुर से जब ज़ुबिन का शव नई दिल्ली पहुंचा तो वहां एयरपोर्ट पर मौजूद केंद्रीय विदेश राज्य मंत्री पवित्र मार्घेरिटा के साथ मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा ने भी यही गीत गाते हुए शव को रिसीव किया था.
अपने इस गीत में जुबिन 'एक गहरी अंधेरी रात के सीने में प्रेमिका की एक तस्वीर दिखाई देने' की बात कर रहे है. इस गाने में वो यह भी कहते हैं कि मैंने कई युगों तक तूफानों के साथ डांस किया है.
असमिया भाषा में ज़ुबिन के ऐसे न जाने कितने ही गीत हैं जिनमें अलग-अलग पीढ़ी के लोगों को उनसे सीधे कनेक्ट महसूस कराते हैं.
1972 में मेघालय के तुरा में जन्मे और असम में पले-बढ़े ज़ुबिन 1990 के दशक की शुरुआत में अपने पहले एल्बम अनामिका से प्रसिद्धि के शिखर पहुंच गए थे.
अगले तीन दशकों में वे न केवल असमिया, बल्कि हिंदी, बांग्ला और अन्य क्षेत्रीय भाषाओं में भी हिट गाने देकर पीढ़ियों की आवाज़ बन गए.
ज़ुबिन कई मंचों पर दावा करते रहे थे कि उन्होंने असमिया समेत अलग-अलग भाषाओं में 30 हज़ार से अधिक गाने गाए हैं.
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ज़ुबिन को बतौर कलाकार नजदीक से जानने वाले वरिष्ठ पत्रकार दिलीप चंदन इस दीवानगी के पीछे प्रदेश में क्षेत्रवाद के पतन समेत कई कारण बताते है.
पिछले चार दशकों से पत्रकारिता कर रहे दिलीप कहते हैं,"ज़ुबिन ने 1992 में अपने पहले एल्बम 'अनामिका' के साथ असम के संगीत जगत में एंट्री की थी. उस समय उनके गानों ने धूम मचा दी थी. दरअसल 1985 में खत्म हुए असम आंदोलन के बाद की स्थिति से जूझ रही पीढ़ी को ज़ुबिन के गानों में खुशी और उम्मीद दिखाई दी. क्योंकि कमजोर पड़ रहे क्षेत्रवाद में एक नई आवाज़ ज़ुबिन के रूप में सामने आई. उनके गीतों में प्रेम, कोमलता के साथ क्रोध और विद्रोह भी था."
वह कहते हैं, "ज़ुबिन की आवाज़ में लोगों को एक-साथ लाने की ताकत थी. ज़ुबिन ने अपने मंचों से असमिया लोगों की हर तकलीफ पर बिना किसी की परवाह किए बात रखी. लोगों को ऐसे एक व्यक्ति की ज़रूरत थी जो अंतर्विरोधों,असुरक्षाओं और अभिमान को अपने साथ लेकर उन्हें एक गीत के रूप में लोगों को सौंप सके. ज़ुबिन ने ऐसा ही किया.ज़ुबिन के गानों ने त्रस्त और अनिश्चितता में जी रहे लोगों की पीड़ा को कम करने का काम किया है. इसी वजह से लोगों में उनकी दीवानगी बढ़ती चली गई."
वहीं वरिष्ठ पत्रकार नव कुमार ठाकुरिया कहते हैं, ''ज़ुबिन की असमय और जिस तरीके से मौत हुई उससे लोगों को बहुत ठेस पहुंची है.''
वो कहते हैं, "ज़ुबिन अपने गानों से असमिया समुदाय के एक बड़े आइकन बन गए थे. उन्होंने हर पीढ़ी को आकर्षित किया. आम लोगों के जीवन का संघर्ष और खासकर युवा पीढ़ी के जज़्बात उनके गीतों में सुनाई पड़ते है. लेकिन जिस तरह उनकी मौत में लापरवाही सामने आई उससे अधिक संख्या में लोग घरों से बाहर निकल कर आए. ज़ुबिन के चाहने वालों के लिए यह एक अन्यायपूर्ण मौत थी. यह ज़ुबिन का युग था जो समाप्त हो गया है."
ज़ुबिन की मौत के बाद लोगों की इस दीवानगी के साथ क्या कोई राजनीतिक बात भी जुड़ी है?
इस सवाल का जवाब देते हुए पत्रकार ठाकुरिया कहते हैं, "ज़ुबिन ने हमेशा राजनीति से दूरी बनाए रखी. भले ही उन्होंने बीजेपी-कांग्रेस पार्टी के लिए चुनावी गीत गाए. लेकिन वो अपने मंचों से सरकार में रही पार्टियों की आलोचना करने वाले कलाकार थे. उनकी यही बात लोगों को पसंद आती थी."
ज़ुबिन अक्सर अपने कार्यक्रमों के मंच से कहते थे कि आम लोगों को राजनीति से दूर रहना चाहिए. क्योंकि राजनीति से कभी कुछ अच्छा हासिल नहीं होता. वहां केवल बुराई मिलती है.
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ज़ुबिन गर्ग ने 1990 के दशक में अपने संगीत करियर की शुरुआत की थी. असमिया गानों में धूम मचाने के बाद वे बॉलीवुड में कुछ अवसर तलाशने के लिए मुंबई चले गए थे.
उन्होंने गैंगस्टर के "या अली रहम अली", नमस्ते लंदन के 'दिलरुबा', कृष-3 के 'दिल तू ही बता' जैसे गानों को अपनी आवाज दी. लेकिन अपनी सफलता के बावजूद ज़ुबिन मुख्यधारा की हिंदी फिल्म इंडस्ट्री को छोड़कर असम लौट आए थे.
उन्होंने मुंबई छोड़ने के अपने फै़सले के बारे में अपने कई इंटरव्यू में कहा था कि वो जमीन से जुड़े इंसान है और मुंबई में ज़्यादा एटीट्यूड है. इसलिए वो अपनी माटी (असम) में अपने लोगों के साथ रहना पसंद करते हैं.
ज़ुबिन के करियर के शुरुआती दिनों में साथ रहे और उनके साथ कई गीत कंपोज कर चुके मानस ज्योति बोरा रोते हुए कहते हैं,"ज़ुबिन की लोगों में दीवानगी ऐसी थी कि वो अपने संगीत कार्यक्रम में आई लाखों की भीड को एक ही सुर में चुप करा सकते थे और अगले सुर से धमाल मचा सकते थे. लोग उनकी बात मानते थे. ज़ुबीन जैसे असमिया आइकन दोबारा पैदा नहीं होते. दुनिया में जब तक असमिया संगीत रहेगा, ज़ुबिन की आवाज़ गूंजती रहेगी."
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित
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