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शेख़ हसीना के ख़िलाफ़ हत्या, साज़िश समेत पांच मामलों में आरोप तय, जानिए पूरा मामला

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बांग्लादेश के अंतरराष्ट्रीय अपराध न्यायाधिकरण (आईसीटी) में पूर्व प्रधानमंत्री शेख़ हसीना के ख़िलाफ़ आरोप पत्र दाखिल किए जाने के साथ ही न्यायिक प्रक्रिया शुरू हो गई है.

उन पर लगे आरोप बीते साल जुलाई में हुए आंदोलन के दौरान प्रदर्शनकारियों पर की गई बर्बरता से जुड़े हैं.

बीते साल हुए आंदोलन के क़रीब आठ महीने बाद पहली बार हसीना के ख़िलाफ़ औपचारिक तौर पर किसी मामले की सुनवाई की प्रक्रिया शुरू हुई है. लेकिन औपचारिक रूप से आरोप तय होने के बाद ही यह प्रक्रिया आगे बढ़ेगी.

अभियोजन पक्ष ने रविवार को बांग्लादेश के अंतरराष्ट्रीय अपराध न्यायाधिकरण में शेख़ हसीना सहित तीन लोगों के ख़िलाफ़ आधिकारिक तौर पर पांच आरोप दायर किए हैं. इसके आधार पर न्यायाधिकरण ने शेख़ हसीना और पूर्व गृह मंत्री असदुज्जमां खान कमाल के ख़िलाफ़ गिरफ़्तारी वारंट जारी किया है.

image Getty Images यह तस्वीर 22 जून 2024 की है, जब बांग्लादेश की तत्कालीन प्रधानमंत्री शेख़ हसीना ने भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से नई दिल्ली स्थित हैदराबाद हाउस में मुलाक़ात की थी.

इस मामले के एक अन्य अभियुक्त पूर्व पुलिस महानिरीक्षक चौधरी अब्दुल्ला अल मामून को पहले ही गिरफ़्तार किया जा चुका है.

तीनों अभियुक्तों को 16 जून को न्यायाधिकरण के सामने पेश होने का निर्देश दिया गया है.

यह मुकदमा उसी न्यायाधिकरण में चलेगा, जिसे शेख़ हसीना ने साल 1971 में सत्ता में रहते हुए मानवता के विरुद्ध अपराधों की सुनवाई के लिए गठित किया था.

मुख्य अभियोजक ताजुल इस्लाम ने अंतरराष्ट्रीय अपराध न्यायाधिकरण में 134 पन्नों का आरोप पत्र दायर किया है.

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इससे पहले 12 मई को जांचकर्ताओं ने एक रिपोर्ट पेश की थी, जिसमें कहा गया था कि हसीना ने ही हत्याओं का आदेश दिया था. शेख़ हसीना पहले से ही आईसीटी में दो अन्य मामलों का सामना कर रही हैं. इनमें एक अवामी लीग सरकार के कार्यकाल के दौरान विपक्षियों को जबरन गायब किए जाने और कथित रूप से कई हत्याओं में शामिल होने से संबंधित है.

दूसरा मामला मोतीझील के शापला स्क्वायर में साल 2013 में हिफाजत-ए-इस्लाम रैली के दौरान होने वाली हत्याओं से संबंधित है.

आईसीटी के मुख्य अभियोजक ताजुल इस्लाम ने बीती 12 मई को जांच रिपोर्ट के हवाले कहा था कि हसीना की ओर से सीधे तौर पर सभी सुरक्षा बलों, उनकी पार्टी यानी अवामी लीग और उससे जुड़े निकायों को ऐसी कार्रवाइयों का आदेश दिया गया था जिसकी वजह से सामूहिक हत्याएं, हमले और महिलाओं और बच्चों के खिलाफ हिंसा हुई.

बांग्लादेश सरकार ने जुलाई में हुई हत्याओं की वजह से शेख़ हसीना का पासपोर्ट भी रद्द कर दिया है.

बांग्लादेश के इतिहास में यह पहला मौका है जब किसी मामले की सुनवाई का टेलीविजन पर सीधा प्रसारण किया गया है.

मुख्य अभियोजक ताजुल इस्लाम ने आरोप पत्र पेश करने के दौरान अपनी शुरुआती टिप्पणी में कहा, "यह मुकदमा सिर्फ अतीत का बदला नहीं है. यह भविष्य के लिए एक वादा भी है."

image BBC हत्या और साजिश के पांच आरोप

मुख्य अभियोजक ताजुल इस्लाम ने आरोप लगाया है कि बीते साल जुलाई और अगस्त के दौरान 1,400 लोगों की हत्या की गई है और करीब 25 हजार लोग घायल हुए हैं. अभियोजन पक्ष ने न्यायाधिकरण को मृत व्यक्तियों की सूची भी सौंपी है.

पूर्व प्रधानमंत्री शेख़ हसीना समेत तीनों अभियुक्तों के ख़िलाफ़ दायर आरोपों के समर्थन में न्यायाधिकरण में 747 पेज के दस्तावेज भी दाखिल किए गए हैं.

इसके अलावा ऑडियो, वीडियो और अलग-अलग अख़बारों में छपी ख़बरों की कतरनें भी अदालत को सौंपी गई है.

इन तीनों अभियुक्तों के ख़िलाफ़ हत्या, हत्या का प्रयास, साजिश, सहायता और प्रोत्साहन, उकसावा देने और उनमें शामिल होने जैसे पांच आरोप लगाए गए हैं.

ताजुल इस्लाम ने न्यायाधिकरण को बताया है कि इन पांच आरोपों में 13 लोगों की हत्या का आरोप भी शामिल है.

उनका कहना था, "शेख़ हसीना ने बीते साल 14 जुलाई को प्रधानमंत्री पद पर रहने के दौरान एक प्रेस कॉन्फ़्रेंस में छात्रों को 'रजाकार' के बेटे और पोते बताते हुए उकसावे वाली टिप्पणी की थी."

वैसे तो, "रजाकार" का शाब्दिक अर्थ "स्वयंसेवक" होता है. लेकिन बांग्लादेश में इसे एक अपमानजनक शब्द के रूप में इस्तेमाल किया जाता है. वहां इसका अर्थ देशद्रोही या गद्दार है. यह उन लोगों के लिए इस्तेमाल किया जाता है, जिन्होंने साल 1971 के बांग्लादेश मुक्ति युद्ध के दौरान पाकिस्तानी सेना के साथ मिलकर काम किया था और जघन्य अपराधों में शामिल थे.

आरोप पत्र में कहा गया है, "अभियुक्त असदुज्जमां खान कमाल और चौधरी अब्दुल्ला अल मामूल समेत सरकार के शीर्ष अधिकारियों के उकसावे पर और उनकी सहायता से, कानून व्यवस्था संभालने वाली एजेंसियों और अवामी लीग के हथियारबंद लोगों ने बड़े पैमाने पर सुनियोजित तरीके से निरीह और निहत्थे छात्रों और आम लोगों पर हमले के साथ ही उनकी हत्याओं, हत्या के प्रयासों और उत्पीड़न में सहायता की थी."

इसमें साजिश का आरोप लगाते हुए कहा गया है कि यह सारे अपराध अभियुक्तों की जानकारी में किए गए थे.

शेख़ हसीना सहित तीनों लोगों पर रंगपुर में बेगम रोकैया विश्वविद्यालय के छात्र अबू सईद की बिना किसी उकसावे हत्या और राजधानी के चंखर पुल में छह लोगों की हत्या का आरोप लगाया गया है.

इसके अलावा उनके ख़िलाफ़ बीते साल पांच अगस्त को, जिस दिन उन्हें बांग्लादेश छोड़ना पड़ा उस दिन भी अशुलिया में पांच लोगों की गोली मारकर हत्या कर उनके शवों को जलाने और एक व्यक्ति को ज़िंदा जलाने का भी आरोप है.

image Getty Images पिछले साल की शुरुआत से शेख़ हसीना के ख़िलाफ़ विरोध प्रदर्शन होने लगे थे 'सिर्फ़ अतीत का बदला नहीं, भविष्य के लिए वादा'

मुख्य अभियोजक ताजुल इस्लाम ने अपनी शुरुआती टिप्पणी में कहा कि यह न्यायिक प्रक्रिया सिर्फ़ अतीत की घटनाओं का बदला लेने के लिए शुरू नहीं की गई है. यह भविष्य के लिए एक वादा भी है.

उनका कहना था कि मानवता विरोधी अपराधों को बर्दाश्त नहीं किया जाएगा. इस्लाम ने कहा, "हम यह साबित करना चाहते हैं कि एक सभ्य समाज, जहां लोकतंत्र और कानून का शासन कायम है, जनसंहार या मानवता के ख़िलाफ़ अपराध बर्दाश्त नहीं करेगा."

उन्होंने कहा, "जिस देश में न्याय है, वहां कोई भी व्यक्ति कानून से ऊपर नहीं हो सकता और ऐसा होगा भी नहीं."

इस्लाम ने जुलाई 2024 के आंदोलन को 'मॉनसून क्रांति' बताया.

मुख्य अभियोजक ने कहा, "यह क्रांति बीते डेढ़ दशक के दौरान होने वाले राजनीतिक उत्पीड़न, मानवाधिकारों के हनन और राजनीतिक उग्रवाद से पैदा होने वाले गहरे सामाजिक विभाजन की प्रतिक्रिया के तौर पर हुई थी."

बांग्लादेश के मुक्ति संग्राम के दौरान मानवता के ख़िलाफ़ अपराधों के लिए हसीना सरकार के शासनकाल में फांसी की सजा पाने वाले जमात-ए-इस्लामी के कुछ शीर्ष नेताओं के परिवार के सदस्य भी न्यायाधिकरण में शेख हसीना के ख़िलाफ़ दायर आरोपों की सुनवाई के दौरान मौजूद थे.

मुख्य अभियोजक की शुरुआती टिप्पणी के दौरान जमात नेता मीर कासिम अली के पुत्र मीर अहमद बिन कासिम भी न्यायाधिकरण में मौजूद थे. मीर कासिम को साल 1971 में मानवता के ख़िलाफ़ अपराधों के लिए फांसी दे दी गई थी.

image BBC यह मुकदमा उसी न्यायाधिकरण में चलेगा, जिसे शेख़ हसीना ने साल 1971 में सत्ता में रहते हुए मानवता के विरुद्ध अपराधों की सुनवाई के लिए गठित किया था

न्यायाधिकरण में अरमान नामक एक एडवोकेट भी मौजूद थे. शेख हसीना सरकार के कार्यकाल के दौरान वो लापता हो गए थे. उनको अगस्त, 2016 में घर से उठा कर ले जाया गया था.

बांग्लादेश के एक पूर्व मंत्री और जमात-ए-इस्लामी के पूर्व अमीर मोतीउर रहमान निज़ामी पर बांग्लादेश स्वतंत्रता संग्राम के दौरान अल-बद्र का नेतृत्व करने का आरोप लगाया गया था. बाद में उनको फांसी दे दी गई थी. उनके पुत्र एडवोकेट नजीब मोमेन भी न्यायाधिकरण में उपस्थित थे.

इसके अतिरिक्त इस मुकदमे की कार्रवाई देखने के लिए कई अन्य वकील भी न्यायाधिकरण में पहुंचे थे. उनमें से ज्यादातर जमात-ए-इस्लामी और बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी (बीएनपी) के समर्थक थे.

ब्रिटिश पत्रकार डेविड बर्गमैन भी अंतरराष्ट्रीय अपराध न्यायाधिकरण में इस मामले की कार्रवाई देखने के लिए अदालत में मौजूद थे. उनके अलावा न्यायाधिकरण की जांच एजेंसी के अधिकारी भी वहां थे.

न्यायाधिकरण में सुनवाई के दौरान ताजुल इस्लाम ने कहा, "यह सुनवाई तथ्यों और सबूतों पर आधारित, निष्पक्ष और उचित होगी. मैं इसे सुनिश्चित करने के लिए सभी का सहयोग चाहता हूँ. न्याय के जरिए किसी समाज में शांति और स्थिरता बहाल होती है."

बीते साल पांच अगस्त के बाद हुए राजनीतिक बदलावों की पृष्ठभूमि में अभियोजन और जांच टीमों सहित बांग्लादेश के अंतर्राष्ट्रीय आपराधिक न्यायाधिकरण में भी बड़े पैमाने पर बदलाव किए गए थे.

अभियोजन पक्ष में कई ऐसे लोग भी थे जो साल 1971 के मानवता विरोधी अपराधों की सुनवाई के दौरान जमात के नेताओं के वकील रहे थे. इस मुद्दे पर राजनीतिक हलकों में चर्चा भी हो रही है.

बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित

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