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नेपाल में लगी आग की आँच क्या भारत पर भी आ सकती है?

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image EPA/Shutterstock नेपाल की सेना ने लोगों से शांति और व्यवस्था बनाए रखने की अपील की है.

नेपाल में सोशल मीडिया पर बैन के बाद हो रहे हिंसक प्रदर्शनों पर भारत ने अब तक काफ़ी सावधानी से प्रतिक्रिया दी है.

भारत ने हालात स्थिर होने तक अपने नागरिकों को नेपाल की यात्रा न करने की सलाह दी है.

नेपाल की राजधानी काठमांडू में सोशल मीडिया पर बैन के बाद सोमवार को युवाओं ने प्रदर्शन शुरू कर दिया.

प्रदर्शनकारियों और पुलिस के बीच झड़पों में 20 से ज़्यादा लोगों की मौत हुई है.

इसके बाद मंगलवार को भी दो लोगों की मौत हुई.

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नेपाल कई चीज़ों की सप्लाई के लिए भारत पर निर्भर है, क्योंकि यह एक लैंडलॉक्ड देश है और यहाँ सामान की आपूर्ति में भारत की भूमिका काफ़ी अहम है.

वहीं भारत के लिए भी नेपाल का ख़ास महत्व है, क्योंकि यह भारत और चीन के बीच एक 'बफ़र स्टेट' है.

image Getty Images नेपाल में प्रदर्शन के दौरान कई जगह आगजनी और तोड़फोड़ हुई है

पिछले महीने भारत और चीन के बीच लिपुलेख के रास्ते व्यापार फिर शुरू करने पर सहमति बनने के बाद नेपाल ने कहा था कि यह क्षेत्र उसका अभिन्न हिस्सा है और यह उसके आधिकारिक नक्शे में शामिल है.

इसके बाद हुई शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) की बैठक में नेपाल के तत्कालीन प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली ने चीन के सामने यह मुद्दा उठाया भी था.

केपी शर्मा ओली के शासनकाल में भारत और नेपाल के बीच रिश्तों में गर्मजोशी नहीं दिखी, जबकि दोनों देशों के बीच ऐतिहासिक तौर पर क़रीबी संबंध रहे हैं.

आमतौर पर यही माना जाता है कि ओली के शासन में भारत और नेपाल के संबंध अच्छे नहीं रहे.

ऐसे हालात में नेपाल में एक बार फिर राजनीतिक अस्थिरता भारत के लिए कितनी बड़ी चिंता की बात हो सकती है?

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image BBC भारत के लिए कितनी बड़ी चिंता image Getty Images नेपाल के युवाओं का आक्रोश नेताओं और अफसरों के प्रति है

नेपाल की भौगोलिक स्थिति भारत के लिए ख़ास मायने रखती है. भारत और चीन के बीच रिश्तों में उतार-चढ़ाव के बीच भारत की नज़र हमेशा नेपाल की घटनाओं पर बनी रहती है.

कई जानकार मानते हैं कि नेपाल के मधेशी आंदोलन को भारत के लोगों की सहानुभूति और समर्थन मिला था.

मधेशियों की ज़्यादातर आबादी नेपाल के दक्षिणी हिस्से में भारत से लगी सीमा के पास बसती है.

नेपाल भारत का तीसरा पड़ोसी देश है, जहाँ देश की शीर्ष नेतृत्व को जनता के आक्रोश के आगे झुकना पड़ा है.

इससे पहले पिछले साल बांग्लादेश में हुई घटना के बाद वहाँ की तत्कालीन प्रधानमंत्री शेख़ हसीना ने इस्तीफ़ा दे दिया था और वो भारत आ गई थीं.

क़रीब तीन साल पहले श्रीलंका में भी ऐसा ही उग्र आंदोलन हुआ था और वहाँ की सरकार का पतन हो गया था.

क्या दक्षिण एशिया के इस इलाक़े में हो रही सियासी उठापटक भारत के लिए चिंता की बात है?

डेनमार्क में नेपाल के राजदूत रहे और काठमांडू में 'सेंटर फ़ॉर सोशल इन्क्लूजन एंड फ़ेडरलिज़म' (सीईआईएसएफ़) थिंक टैंक चलाने वाले विजयकांत कर्ण मानते हैं कि ये हालात भारत के लिए चिंता की बात हैं.

उनका कहना है, "भारत लोकतंत्र समर्थक देश है. वह चाहता है कि उसके पड़ोस में लोकतांत्रिक व्यवस्था ठीक से चले. लेकिन श्रीलंका और फिर बांग्लादेश में जो कुछ हुआ वह भारत के लिहाज से सही नहीं हुआ. बांग्लादेश के मुद्दे का तो भारत पर ख़ास असर भी हुआ है."

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भारत पर असर image Getty Images काठमांडू में प्रदर्शन के दौरान आक्रोशित

भारत और नेपाल के बीच संबंध काफ़ी पुराने हैं. नेपाल भारत के साथ सिर्फ़ भौगोलिक रूप से जुड़ा नहीं है बल्कि वह सामाजिक और सांस्कृतिक रूप से भी जुड़ा हुआ है.

दोनों देशों के लोग एक-दूसरे के यहाँ रोज़ी-रोटी कमाते हैं, यानी उनकी आर्थिक गतिविधियाँ सीमा पार से जुड़ी हुई हैं. साथ ही उनके वैवाहिक संबंध भी हैं.

इसके अलावा दोनों देशों की सीमा के बीच गाँवों की बसावट इस तरह से है कि यह पता लगाना काफ़ी मुश्किल है कि कौन सा इलाक़ा नेपाल का हिस्सा है और कौन भारत का.

तो क्या नेपाल के मौजूदा हालात का असर भारत पर पड़ सकता है?

image BBC

विजयकांत कर्ण कहते हैं, "मुझे इसका भारत पर कोई असर नहीं दिखता है. इस आंदोलन में भारत का कोई विरोध नहीं है. असल में यह भ्रष्टाचार का विरोध है और सोशल मीडिया पर बैन ने इसे भड़का दिया."

"नेपाल में आगे जो भी सरकार आएगी, वह भारत के साथ अच्छे संबंध बनाए रखेगी. पड़ोसी देश नेपाल के लिए बहुत महत्व रखते हैं."

दक्षिण एशिया की भू-राजनीति के जानकार और साउथ एशियन यूनिवर्सिटी में एसोसिएट प्रोफ़ेसर धनंजय त्रिपाठी भी इस बात से सहमत दिखते हैं.

उनका कहना है, "भारत के पड़ोस में यह अशांति है, इसलिए भारत के लिए चिंता की बात है. भारत का नेपाल में बड़ा निवेश भी है. उसे नेपाल में रहने वाले भारतीयों की परवाह भी करनी होगी. लेकिन भारत पर इसका कोई असर पड़ता नहीं दिखता है. वहाँ के युवाओं में ग़ुस्सा है और भारत को यह ध्यान रखना होगा कि किसी भी तरह से ऐसा संदेश न जाए कि भारत वहाँ के नेताओं को बचा रहा है."

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नेपाल के हालात image Getty Images प्रदर्शन के दौरान काठमांडू की एक सड़क का हाल

विजयकांत कर्ण कहते हैं, "लोगों के पास रोज़गार नहीं है, नौकरी नहीं है. किसानों को खाद-उर्वरक नहीं मिल रहे, सिंचाई के लिए पानी नहीं मिल रहा. देश में क़ानून का शासन नहीं है."

"अपने फायदे के लिए नेता क़ानून को बदल देते हैं. उनकी ज़िंदगी पूरी तरह बदल गई है. उनके आलीशान घर हो गए हैं, बच्चे विदेश में रह रहे हैं. लेकिन आम लोगों की ज़िंदगी नहीं बदली है और इसी का यह विरोध है."

नेपाल में इसी साल मार्च के महीने में राजशाही के समर्थन में प्रदर्शन हुए थे.

नेपाल की अर्थव्यवस्था और शासन व्यवस्था की ख़राब हालात के कारण युवा बेहतर जीवन और रोज़गार की तलाश में लगातार दूसरे देशों का रुख़ कर रहे हैं.

जिस अव्यवस्था का ज़िक्र विजयकांत कर्ण कर रहे हैं, उसी को मुद्दा बनाकर राजशाही समर्थक फिर से राजशाही और हिंदू राष्ट्र के समर्थन में प्रदर्शन कर रहे थे.

लेकिन इस बार के प्रदर्शन काफ़ी उग्र और हिंसक रहे. प्रदर्शनों के दूसरे ही दिन प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली ने इस्तीफ़ा दे दिया है.

नेपाल के राष्ट्रपति समेत कई लोगों ने युवाओं और नेपाली नागरिकों से शांति की अपील की है, लेकिन युवाओं के आक्रोश की ख़बरें लगातार आ रही हैं.

प्रोफ़ेसर धनंजय त्रिपाठी मानते हैं, "भारत को नेपाल के मुद्दे पर संवेदनशील बने रहना होगा. वहाँ के मौजूदा हालात का भारत पर फ़ौरन कोई असर नहीं पड़ने वाला है. बस भारत को यह दिखाना होगा कि वह जनता की बातों से सहमत है."

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