बिहार विधानसभा चुनाव 2025 अब दिलचस्प मोड़ पर पहुंच चुका है। वोट वाइब (Vote Vibe) के ताजा सर्वे (वॉल्यूम 4, 25 अक्टूबर) ने राज्य की राजनीति में नई हलचल मचा दी है।
सर्वे के मुताबिक इस बार मुकाबला इतना नजदीकी है कि परिणाम किसी भी ओर झुक सकता है।
महागठबंधन (MGB) और एनडीए (NDA) के बीच केवल 0.3 प्रतिशत का फासला है, यानी नीतीश कुमार और तेजस्वी यादव के बीच असली जंग अब हर बूथ पर लड़ी जाएगी। सर्वे में नीतीश कुमार और तेजस्वी यादव में कांटे की टक्कर देखी जा रही है। आइए जानें चुनाव से पहले किए गए सर्वे में क्या सामने आया है।
Bihar Opinion poll: सर्वे में मिली बराबरी की टक्कर
सर्वे में महागठबंधन को 34.7%, जबकि एनडीए को 34.4% वोट शेयर मिलने का अनुमान लगाया गया है। वहीं, प्रशांत किशोर की जन सुराज पार्टी तीसरे मोर्चे के रूप में 12.3% के साथ अपने असर का अहसास करा रही है। दिलचस्प बात यह है कि 8.4% मतदाता अब भी “हंग असेंबली” यानी अधूरी बहुमत वाली स्थिति की संभावना देख रहे हैं। .
बदलेगा वोट समीकरण .
सर्वे के मुताबिक 66.2% लोगों का मानना है कि छठ पूजा के बाद प्रवासी मजदूर बिहार लौटेंगे और उनकी मौजूदगी से मतदान प्रतिशत में बड़ा बदलाव देखने को मिल सकता है। यानी जो वोटर अभी बाहर हैं, वही चुनाव का पासा पलट सकते हैं।
यही वजह है कि सभी राजनीतिक दल अब अपने अभियानों को ग्रामीण इलाकों तक केंद्रित कर रहे हैं।
जाति नहीं, अब पार्टी वफादारी पर वोट
बिहार की राजनीति में पहली बार ऐसा रुझान दिखा है कि 51.1% मतदाता अब जाति से ज्यादा पार्टी वफादारी को अहमियत दे रहे हैं। यह ट्रेंड खासतौर पर युवाओं और शहरी मतदाताओं में देखा जा रहा है। यानी जो राजनीतिक दल स्पष्ट एजेंडा और भरोसेमंद चेहरा पेश करेगा, वही जनता का विश्वास जीत पाएगा।
तेजस्वी का ‘नौकरी वादा’ बनाम नीतीश की ’10 हजार स्कीम’
तेजस्वी यादव ने अपने प्रचार अभियान में 10 लाख नौकरियों के वादे को दोबारा मुख्य मुद्दा बनाया है, लेकिन सर्वे के अनुसार 48% मतदाता इसे सिर्फ एक चुनावी नारा मानते हैं, जबकि 50% लोगों का मानना है कि यह नीतीश कुमार की ₹10,000 सहायता योजना का मुकाबला कर सकता है। यानी रोजगार अभी भी चुनाव का सबसे बड़ा मुद्दा बना हुआ है, पर लोगों के बीच संदेह और उम्मीद दोनों का मिश्रण है।
नीतीश की छवि अब भी प्रभावशाली
सर्वे में एक और दिलचस्प नतीजा यह निकला कि 56.7% लोगों ने नीतीश कुमार के शासनकाल को लालू-राबड़ी के दौर से बेहतर बताया। इससे साफ है कि विकास, सड़क, बिजली, और कानून-व्यवस्था के मुद्दों पर अब भी नीतीश की विश्वसनीयता कायम है। हालांकि बीजेपी के साथ गठबंधन के बाद कुछ मतदाता उन्हें “पुराने नीतीश” की तरह नहीं देखते, लेकिन उनकी प्रशासनिक पकड़ अब भी मजबूत मानी जा रही है।
प्रशांत किशोर: तीसरी ताकत की तलाश में
जन सुराज के संस्थापक प्रशांत किशोर, जो अब तक जनता के बीच “परिवर्तन यात्रा” पर हैं, धीरे-धीरे अपनी जमीन बना रहे हैं। 12.3% वोट शेयर का अनुमान उनके लिए बड़ी उपलब्धि माना जा रहा है, खासकर जब उन्होंने किसी बड़े गठबंधन में शामिल हुए बिना जनता के भरोसे अपनी जगह बनाई है। राजनीतिक जानकारों का मानना है कि अगर PK की यह रफ्तार बनी रही तो जन सुराज 20-25 सीटों तक प्रभाव डाल सकता है।
सर्वे के पीछे का विज्ञान
यह Vote Vibe सर्वे 15 से 19 अक्टूबर के बीच किया गया था, जिसमें कुल 10,859 लोगों से बातचीत की गई। इनमें 30% ग्रामीण और 70% शहरी वोटर शामिल थे। पुरुष 52% और महिला 48% रही। सर्वे का मार्जिन ऑफ एरर ±3% है। यानी नतीजों में मामूली हेरफेर से पूरा गणित बदल सकता है।
मैदान बराबरी पर, लेकिन निर्णायक होंगे आखिरी दिन
Vote Vibe के आंकड़ों से साफ है कि बिहार की सियासत इस बार पहले से कहीं ज्यादा रोमांचक है। नीतीश कुमार अपनी साख और विकास की राजनीति पर टिके हैं, तो तेजस्वी यादव बेरोजगारी और युवाओं की उम्मीदों के सहारे जनता तक पहुंच रहे हैं। वहीं, प्रशांत किशोर तीसरे विकल्प के रूप में धीरे-धीरे अपने असर का दायरा बढ़ा रहे हैं। अब सवाल यह है कि क्या इस बार भी नीतीश का अनुभव तेजस्वी की युवा लहर पर भारी पड़ेगा, या फिर बिहार एक नए राजनीतिक समीकरण का गवाह बनेगा?
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