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हर्षा रिछारिया की सनातन युवा जोड़ो पदयात्रा में शामिल हुई मुस्लिम लड़की, कहा प्रेमानंद महाराज मेरे आदर्श गुरु हैं..

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नई दिल्ली: सोमवार को प्रयागराज महाकुंभ से वायरल हुई हर्षा रिछारिया ने वृंदावन से अपनी पदयात्रा का आगाज किया है। यह पदयात्रा 21 अप्रैल को संभल में जाकर समाप्त होगी। इस पदयात्रा को सनातन युवा जोड़ो पदयात्रा नाम दिया गया है। इसका मुख्य लक्ष्य युवाओं को नशामुक्त करना और धर्म के प्रति जागरूक करना है।

हर्षा के साथ मुस्लिम लड़की शामिल

इस पदयात्रा के दौरान एक मुस्लिम लड़की भी शामिल हुई है जो हिसाब में नजर आ रही है। इस मुस्लिम लड़की ने 8 महीने पहले एक हिंदू लड़के के साथ शादी की हुई थी। लड़की का नाम अलीशा बताया जा रहा है। वह मथुरा की रहने वाली है। जब उस लड़की से लोगों ने पूछा कि आप इस यात्रा में क्यों आई हैं, तो उसने बताया कि मैंने हर्षा रिछारिया द्वारा निकाली जा रही पदयात्रा के पोस्टर देखे थे। इस कारण से मैं इस पदयात्रा में शामिल हुई हूं। मैं पदयात्रा में शामिल होना चाहती थी।

8 महीने पहले की हिंदू लड़के से शादी

अलीशा अपने पति सचिन के साथ पदयात्रा में शामिल हुई। इन दोनों ने 8 महीने पहले ही इलाहाबाद हाई कोर्ट में शादी की हुई थी। दोनों एक-दूसरे को पिछले 6 सालों से जानते हैं, अलीशा ने कहा है कि मैं और मेरे पति सचिन हम बहुत ही प्यार करते हैं। अलीशा के घर वाले इस शादी के खिलाफ थे। लड़की ने अपने घर वालों की एक भी बात नहीं मानी और सचिन के साथ चली गई थी। अलीशा का कहना है कि मेरा और घर वालों का कोई संबंध नहीं है।

प्रेमानंद महाराज मेरे आदर्श गुरु हैं

अलीशा का कहना है कि मैंने अब इस्लाम धर्म को छोड़ दिया है। मैंने सचिन से शादी करने के बाद हिंदू धर्म अपना लिया है। अलीशा से पूछा गया कि हिजाब पहनकर क्यों आई हो, इसपर उसने कहा कि यह आदत में है और धीरे-धीरे यह भी छूट जाएगी। अलीशा से जब पूछा गया कि उसके जीवन के मोटिवेशन गुरु कौन है, जिनको लेकर वह हिंदू धर्म में आई, इस बात पर अलीशा ने कहा कि उसे प्रेमानंद महाराज के प्रवचन अच्छे लगते हैं, मैं उन्हें अपना आदर्श मानती हूं।

आध्यात्मिकता किसी धर्म की सीमा में नहीं बंधती

यह कहानी सिर्फ एक धर्म परिवर्तन की नहीं है, बल्कि आत्म-खोज, प्रेम, और सामाजिक साहस की भी है। सनातन युवा जोड़ जैसी यात्राएं तभी सार्थक होंगी जब वे आस्था से जुड़ने की आज़ादी के साथ-साथ संवाद और समावेश को भी बढ़ावा दें। अलीशा की मौजूदगी इस यात्रा में एक प्रतीक बन गई है कि आध्यात्मिकता किसी धर्म की सीमा में नहीं बंधती है, जबकि वह व्यक्तिगत अनुभव और मार्गदर्शन से आकार लेती है।

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