New Delhi, 28 अक्टूबर . प्लेसिबो इफेक्ट एक बहुत ही दिलचस्प मनोवैज्ञानिक और शारीरिक प्रभाव है. आसान भाषा में कहें तो, जब किसी व्यक्ति को ऐसा इलाज या दवा दी जाती है, जिसमें कोई असली असरदार तत्व नहीं होता जैसे कि शक्कर की गोली या नमक का पानी, लेकिन फिर भी उसे लगता है कि वह ठीक हो रहा है, तो इसे प्लेसिबो इफेक्ट कहा जाता है.
यह असर असल में दवा से नहीं, बल्कि दिमाग की शक्ति और विश्वास से होता है.
दरअसल, ‘प्लेसिबो इफेक्ट’ का मतलब होता है, फेक ट्रीटमेंट यानी ऐसा इलाज जो असली नहीं होता, लेकिन मरीज को यकीन दिलाया जाता है कि उसे सही दवा दी जा रही है.
दिलचस्प बात यह है कि कई बार यह झूठा इलाज भी असर दिखा देता है, क्योंकि व्यक्ति उसे सच मान लेता है. जब हम किसी डॉक्टर, दवा या थेरेपी पर पूरी ईमानदारी से भरोसा करते हैं, तो हमारा दिमाग अपने-आप ऐसे रसायन छोड़ता है, जो शरीर को ठीक करने में मदद करते हैं.
उदाहरण के लिए, अगर किसी मरीज को सिरदर्द है और डॉक्टर उसे एक साधारण शक्कर की गोली दे देता है, लेकिन कहता है कि यह बहुत असरदार दवा है, तो कई बार मरीज का सिरदर्द सच में कम हो जाता है. ऐसा इसलिए होता है क्योंकि मरीज का दिमाग उस दवा पर भरोसा कर लेता है और शरीर खुद को बेहतर महसूस कराने की प्रक्रिया शुरू कर देता है.
प्लेसिबो शरीर को सीधा ठीक नहीं करता, लेकिन मानसिक रूप से सकारात्मक प्रभाव डालता है, जिससे दर्द, तनाव और थकान कम महसूस होती है. खासतौर पर कैंसर उपचार के दौरान होने वाले साइड इफेक्ट जैसे मितली, कमजोरी और थकान में यह असर दिखा सकता है. कई स्टडीज में पाया गया है कि प्लेसिबो इफेक्ट डिप्रेशन, दर्द, स्लीप डिसऑर्डर और मेनोपॉज जैसी स्थितियों में प्रभावी होता है.
हालांकि, इसके नकारात्मक प्रभाव भी हो सकते हैं. कुछ लोगों को यह लग सकता है कि उन्हें इलाज से साइड इफेक्ट हो रहा है, जबकि असल में ऐसा नहीं होता.
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पीआईएम/एबीएम
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