Patna, 31 अक्टूबर . बिहार विधानसभा चुनाव को लेकर जारी सरगर्मियों के बीच करगहर सीट की चर्चा तेज हो गई है. रोहतास जिले के सासाराम अनुमंडल के अंतर्गत आने वाला करगहर विधानसभा क्षेत्र पूरी तरह से ग्रामीण इलाका है. यह 257 गांवों से मिलकर बना है और इसका सबसे नजदीकी शहर जिला मुख्यालय सासाराम है. शहरी केंद्रों के अभाव में यहां की अर्थव्यवस्था और सामाजिक जीवन मुख्यतः कृषि पर आधारित है.
करगहर की ऐतिहासिक पहचान लंबे समय तक सासाराम से जुड़ी रही है. यह इलाका न केवल प्रशासनिक रूप से बल्कि Political रूप से भी सासाराम का अभिन्न हिस्सा माना जाता रहा. 2008 में परिसीमन के बाद इसे एक अलग विधानसभा क्षेत्र का दर्जा मिला और 2010 में पहली बार यहां चुनाव हुआ. इससे पहले यह सासाराम विधानसभा का हिस्सा था.
शिक्षा के मामले में यह क्षेत्र आज भी पिछड़ा हुआ है. यहां उच्च शिक्षा संस्थानों का अभाव है और स्कूलों में संसाधनों की कमी बड़ी चुनौती बनी हुई है. युवाओं को बेहतर शिक्षा और रोजगार के अवसरों के लिए अक्सर दूसरे शहरों में या राज्यों में जाना पड़ता है. स्वास्थ्य सेवाओं की स्थिति भी कमजोर है. यहां के कई पंचायतों में अब भी प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र ठीक से काम नहीं कर रहे.
चुनाव आयोग के 2024 के आंकड़ों के अनुसार, करगहर की कुल जनसंख्या 5,67,156 है. इनमें 2,94,543 पुरुष और 2,72,613 महिलाएं हैं. वहीं, कुल मतदाताओं की संख्या 3,29,466 है. इनमें 1,72,706 पुरुष, 1,56,750 महिलाएं और 10 थर्ड जेंडर मतदाता शामिल हैं.
सामाजिक संरचना की दृष्टि से यहां अनुसूचित जातियों की भागीदारी करीब 20.41 फीसदी है, जबकि मुस्लिम मतदाता लगभग 6.4 फीसदी हैं. ओबीसी और सवर्ण समुदायों की भी मजबूत उपस्थिति है, जो चुनावी समीकरणों को निर्णायक बनाती है.
करगहर विधानसभा की सबसे बड़ी चुनौतियां शिक्षा, रोजगार और बुनियादी ढांचा हैं. ग्रामीण इलाकों में सड़क, बिजली और स्वास्थ्य सेवाएं अब भी अधूरी हैं. कृषि यहां की रीढ़ है, लेकिन सिंचाई की पर्याप्त सुविधा नहीं होने के कारण किसानों को हर साल नुकसान झेलना पड़ता है. युवाओं में रोजगार की कमी और पलायन गंभीर समस्या है. इन सबके बीच, लोग उम्मीद करते हैं कि जो भी Government बने वह बुनियादी सुविधाओं को ठीक करे.
करगहर में ओबीसी, सवर्ण और दलित वोटरों का मिश्रण इसे हर चुनाव में त्रिकोणीय मुकाबले का केंद्र बना देता है. राजद का यादव-मुस्लिम समीकरण, जदयू का कुर्मी-दलित आधार और भाजपा की सवर्ण पकड़ तीनों दलों को मजबूती देती है. 2025 के चुनाव में यहां महागठबंधन और एनडीए के बीच कांटे की टक्कर देखने को मिल सकती है.
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पीएसके/एबीएम
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