इस्लामाबाद, 14 सितम्बर . Pakistan के President आसिफ अली जरदारी ने Sunday को आतंकवाद निरोधक (संशोधन) विधेयक, 2025 पर हस्ताक्षर कर इसे कानून बना दिया. इस कानून के लागू होते ही Government और सुरक्षा बलों को संदिग्धों को बिना आरोप लगाए तीन महीने तक हिरासत में रखने की व्यापक शक्तियां मिल गई हैं.
हालांकि Government का कहना है कि आतंकी घटनाएं, फिरौती और अपहरण जैसी घटनाओं से निपटने के लिए यह कानून जरूरी है, लेकिन विपक्षी दलों और मानवाधिकार संगठनों ने इसे नागरिक स्वतंत्रता और लोकतांत्रिक अधिकारों पर सीधा हमला बताया है.
यह संशोधन 1997 के आतंकवाद निरोधक अधिनियम (एटीए) के उन प्रावधानों को बहाल करता है जो पहले समाप्त हो चुके थे. अब संघीय एजेंसियां ही नहीं, बल्कि सेना भी Governmentी आदेशों के तहत लोगों को हिरासत में ले सकेगी.
आलोचकों का कहना है कि कानून में “राष्ट्रीय सुरक्षा” और “सार्वजनिक सुरक्षा” जैसे शब्द बहुत व्यापक और अस्पष्ट हैं, जिनका इस्तेमाल मनमाने ढंग से Political कार्यकर्ताओं, छात्रों, पत्रकारों और अल्पसंख्यकों पर किया जा सकता है.
यूरोपीय टाइम्स की एक रिपोर्ट के अनुसार, सबसे विवादास्पद पहलू “रोकाथामात्मक हिरासत” का है, जिसमें कार्रवाई के लिए सिर्फ “विश्वसनीय सूचना” या “उचित संदेह” ही पर्याप्त माना गया है. विशेषज्ञों का कहना है कि यह प्रावधान बड़े पैमाने पर गिरफ्तारियों और दमन का रास्ता खोल सकता है.
कानून में सेना को विशेष अधिकार दिए जाने से Pakistan की राजनीति में पहले से ही मजबूत सैन्य प्रभाव और गहरा होने की आशंका जताई जा रही है.
विश्लेषकों का कहना है कि पहले भी आतंकवाद विरोधी कानूनों का इस्तेमाल वास्तविक आतंकी खतरों से इतर, बलूच राष्ट्रवादियों, पश्तून कार्यकर्ताओं और अन्य हाशिये पर खड़े समुदायों के खिलाफ होता रहा है. नया कानून इन समूहों को और ज्यादा निशाने पर ला सकता है.
President जरदारी द्वारा इस कानून को मंजूरी दिए जाने को आलोचक एक बार फिर सुरक्षा चिंताओं को नागरिक अधिकारों पर हावी करने की प्रवृत्ति के तौर पर देख रहे हैं.
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डीएससी/
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