नेपाल की राजधानी काठमांडू हाल ही में हिंसा की चपेट में आ गई। प्रदर्शनकारियों ने देश की नई संसद भवन को आग लगा दी। यह वही इमारत है जिसे नेपाल की संघीय शासन प्रणाली लागू होने के बाद विशेष रूप से विधायी कार्यों के लिए तैयार किया गया था। घटना के बाद अब यह चर्चा तेज हो गई है कि आखिर इस भवन के निर्माण पर कितना खर्च आया था और इसे बनाने की प्रक्रिया क्या रही। सिंह दरबार परिसर के भीतर स्थित यह संघीय संसद भवन वर्ष 2019 में बनना शुरू हुआ था। निर्माण कार्य की जिम्मेदारी चीन की सेकंड हार्बर इंजीनियरिंग कंपनी और नेपाल की टुंडी कंस्ट्रक्शन को संयुक्त रूप से दी गई थी। इससे पहले नेपाल की संसद का संचालन अस्थायी रूप से बानेश्वर के इंटरनेशनल कन्वेंशन सेंटर से किया जाता था। यही वजह रही कि इसे नेपाल की पहली पूर्ण संसद संरचना कहा गया।
लागत बढ़कर पहुंची 5.802 बिलियन नेपाली रुपये
शुरुआती अनुमान के मुताबिक, भवन की लागत लगभग 5 अरब नेपाली रुपये तय की गई थी। लेकिन परियोजना में देरी, बढ़ती निर्माण सामग्री की कीमतें और समयसीमा का लगातार खिसकना इस लागत को बढ़ाता चला गया। अंततः इस पर 560 मिलियन नेपाली रुपये (लगभग 56 करोड़) अतिरिक्त खर्च जुड़ गया। सरकारी आंकड़ों के अनुसार, कुल लागत बढ़कर 5.802 बिलियन नेपाली रुपये (करीब 43.5 मिलियन अमेरिकी डॉलर) तक पहुंच गई।
निर्माण अधूरा, तभी भड़की आगजनी
ध्यान देने वाली बात यह है कि यह भवन अभी पूरी तरह से तैयार भी नहीं हुआ था। काम तेज़ी से चल रहा था और सरकार जल्द ही इसे पूरा करने की दिशा में आगे बढ़ रही थी। लेकिन सोमवार को प्रधानमंत्री के.पी. शर्मा ओली के इस्तीफे के कुछ ही देर बाद हालात अचानक बिगड़ गए। प्रदर्शनकारियों ने संसद भवन को घेर लिया और बाहरी हिस्से में आग लगा दी। इस घटना में मुख्य ढांचा क्षतिग्रस्त तो हुआ, लेकिन पूरी इमारत राख में तब्दील नहीं हुई।
सोशल मीडिया प्रतिबंध बना आग का कारण
इस हिंसा के पीछे सबसे बड़ी वजह सरकार द्वारा लगाया गया सोशल मीडिया बैन माना जा रहा है। सोमवार को अचानक लागू हुए इस प्रतिबंध ने जनता में असंतोष को और गहरा दिया। नतीजतन लोग सड़कों पर उतर आए और विरोध प्रदर्शन हिंसक रूप ले गया। इसी गुस्से का परिणाम संसद भवन और प्रधानमंत्री ओली के घर पर हमले के रूप में सामने आया। हालात बेकाबू होते देख सरकार ने देर रात बैन हटाने की घोषणा कर दी, लेकिन तब तक भारी नुकसान हो चुका था।
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