हिन्दू पंचांग के अनुसार, आश्विन माह में आने वाला श्राद्ध पक्ष पितरों की स्मृति और तर्पण के लिए एक अत्यंत पुण्यदायी समय होता है। इस दौरान विशेष रूप से दो तिथियाँ – कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी और अमावस्या, जिनमें सर्व पितृ अमावस्या प्रमुख है – पितृ तर्पण, पिंडदान और धार्मिक अनुष्ठानों के लिए सबसे अधिक शुभ मानी जाती हैं। इस विशेष अवसर पर राजस्थान के पुष्कर तीर्थ में हजारों श्रद्धालु एकत्रित होते हैं, जो अपने दिवंगत पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए श्रद्धा भाव से श्राद्ध कर्म और जल तर्पण करते हैं।
पुष्कर, जिसे पुराणों में सबसे पवित्र तीर्थों में स्थान प्राप्त है, श्राद्ध पक्ष में आस्था का केंद्र बन जाता है। विशेष रूप से वे लोग जिनके परिवार में किसी की मृत्यु आकस्मिक कारणों जैसे दुर्घटना, अग्निकांड, डूबने, विष सेवन या अन्य अप्राकृतिक स्थितियों में हुई होती है, वे चतुर्दशी को पिंडदान और तर्पण करते हैं। मान्यता है कि इस दिन किए गए धार्मिक कर्म पितरों को मोक्ष प्रदान करते हैं और घर-परिवार पर उनका आशीर्वाद बना रहता है।
ज्योतिष और धर्म शास्त्रों में वर्णित है कि चतुर्दशी का दिन उन आत्माओं के लिए विशेष रूप से उपयुक्त होता है जिन्हें अकाल मृत्यु प्राप्त हुई हो। जब ऐसे लोगों की आत्मा तृप्त होती है, तो वे अपने वंशजों को सुख-शांति और उन्नति का आशीर्वाद देते हैं। यही कारण है कि इस दिन देशभर से तीर्थयात्री पुष्कर जैसे तीर्थस्थलों का रुख करते हैं और विधिपूर्वक श्राद्ध कर्म संपन्न करते हैं।
दूसरी ओर, सर्व पितृ अमावस्या की तिथि उन समस्त ज्ञात-अज्ञात आत्माओं के लिए समर्पित मानी जाती है जिनकी मृत्यु की तिथि, वार या विवरण स्मृति में नहीं है। इस दिन विशेष रूप से उन पितरों का स्मरण किया जाता है जिनकी जानकारी पीढ़ियों में कहीं खो गई हो। इस तिथि को किए गए तर्पण और पिंडदान समस्त पितरों को तृप्त करते हैं और उनके आशीर्वाद से वंशवृद्धि, समृद्धि और परिवार में सौहार्द बना रहता है।
पंडितों और धर्माचार्यों की मान्यता है कि श्राद्ध पक्ष में किए गए कर्मों का पुण्य कई गुना होकर वापस लौटता है। जल, अन्न, वस्त्र, फल, मिठाई, गौ सेवा, वृक्षारोपण और जरूरतमंदों को दान देने जैसे कार्य श्राद्ध काल में अत्यंत फलदायी माने गए हैं। जब व्यक्ति सच्चे मन से अपने पितरों का स्मरण करता है और श्रद्धा के साथ उनकी सेवा करता है, तो पितृगण न केवल प्रसन्न होते हैं, बल्कि अपने आशीर्वाद से जीवन की बाधाओं को दूर करते हैं।
पुष्कर जैसे तीर्थस्थलों पर इन दिनों सुबह से ही घाटों पर पूजा-अर्चना, मंत्रोच्चार और पिंडदान का सिलसिला आरंभ हो जाता है। जल में खड़े होकर पितरों के नाम से तर्पण करते श्रद्धालु, पवित्रता और भावनात्मक जुड़ाव की जीवंत तस्वीर प्रस्तुत करते हैं। यह दृश्य यह सिद्ध करता है कि भारतीय संस्कृति में पूर्वजों का स्मरण केवल एक धार्मिक कर्तव्य नहीं, बल्कि भावनात्मक उत्तरदायित्व भी है।
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