आस्था और अनुशासन का प्रतीकछठ पूजा सिर्फ एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं बल्कि आत्मसंयम, शुद्धता और समर्पण का पर्व माना जाता है। यह पर्व सूर्य देव और छठी मैया को समर्पित होता है, जो संतान सुख, स्वास्थ्य और समृद्धि के लिए किया जाता है।
4 दिन का होता है छठ महापर्वछठ महापर्व का आज दूसरा दिन है। पर्व का आरंभ नहाय-खाय से 25 अक्टूबर को शुरु हुआ। आज खरना का दिन है। आज के दिन व्रती पूरी तरह उपवास शुरू करते हैं। पूजा का समापन 28 अक्टूबर की सुबह उदय होते सूर्य को अर्घ्य देकर होगा। इस दौरान व्रती महिलाएं करीब 36 घंटे तक निर्जला उपवास रखेंगी। यानी न कुछ खाती हैं, न पानी पीती हैं।
छठ व्रत की कठिनाई और अनुशासनछठ व्रत को सबसे कठिन व्रतों में गिना जाता है, क्योंकि इसे पूर्ण शुद्धता और संयम से निभाना पड़ता है। व्रती को न सिर्फ शारीरिक बल्कि मानसिक रूप से भी दृढ़ रहना होता है। कई महिलाएं स्वास्थ्य कारणों या गर्भावस्था के चलते इस दौरान कमजोरी महसूस करती हैं, जिसके कारण यह सवाल उठता है, क्या छठ व्रत में पानी पीना संभव है?
छठ व्रत में पानी पीने की परंपराशास्त्रों के अनुसार, छठ व्रत को निर्जला रखना सर्वोत्तम माना गया है, लेकिन विशेष परिस्थितियों में एक पारंपरिक विधि के तहत पानी ग्रहण किया जा सकता है, जिससे व्रत भंग नहीं होता।
इस विधि के अनुसार, पानी पीने से पहले व्रती को छठी मैया का मंत्र और सूर्य देव का मंत्र जाप करना चाहिए-
छठी मैया मंत्र:
“ॐ षष्ठी देव्यै नमो नमः, सुख-संपदा दायिनी, पुत्र-पौत्र प्रदायिनी।
सर्व रोग निवारिणी, सर्व मनोकामना पूर्यंतु मम॥”
सूर्य देव मंत्र:
“ॐ सूर्याय नमः॥”
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कैसे पिएं पानी ताकि व्रत न टूटेमंत्रों के जाप के बाद व्रती एक पीतल, तांबे या मिट्टी के पात्र में जल भरते हैं। फिर वे अपने घुटनों और हाथों को जमीन पर टिकाकर गाय की मुद्रा में बैठकर जीभ से पानी ग्रहण करते हैं।
ऐसा करने से यह माना जाता है कि व्रत नहीं टूटता, बल्कि छठी मैया और सूर्य देव दोनों की कृपा प्राप्त होती है।
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व्रत का आध्यात्मिक संदेशछठ पूजा का मूल उद्देश्य आत्मसंयम, पवित्रता और प्रकृति के प्रति आभार व्यक्त करना है। यह पर्व नदियों, सूर्य की किरणों और शुद्ध आहार के माध्यम से मानव और प्रकृति के सहअस्तित्व का संदेश देता है।
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