नई दिल्ली: केरल के तिरुवनंतपुरम से कांग्रेस सांसद शशि थरूर अपने बेबाक बयानों के लिए जाने जाते हैं। कई बार उनके बयान खुद उनकी पार्टी कांग्रेस के लिए मुसीबत खड़ी कर देते हैं। ताजा मामला उनके वंशवाद को लेकर लिखे एक आर्टिकल से जुड़ा है। दरअसल, बिहार विधानसभा चुनाव के बीच उन्होंने अंतरराष्ट्रीय मीडिया संगठन ‘प्रोजेक्ट सिंडिकेट’ के लिए लिखे एक लेख में थरूर ने बताया कि नेहरू-गांधी परिवार कांग्रेस से जुड़ा है, लेकिन राजनीतिक परिदृश्य में वंशवाद का बोलबाला है। वंशवादी राजनीति भारतीय लोकतंत्र के लिए एक 'गंभीर खतरा' है। अब समय आ गया है कि भारत वंशवाद की जगह योग्यता को स्वीकार्यता प्रदान करे।
शशि थरूर ने कैसे बढ़ाई कांग्रेस-आरजेडी की टेंशन
शशि थरूर ने जिस तरह से वंशवाद का मुद्दा उठाया वो चौंकाने वाला है। खास तौर से कांग्रेस जरूर उनके इस लेख से असहज महसूस कर रही होगी। ऐसा इसलिए क्योंकि मामला टाइमिंग का भी है। बिहार चुनाव में 6 नवंबर को पहले दौर की वोटिंग है। कांग्रेस और आरजेडी समेत विपक्षी दल महागठबंधन बनाकर चुनावी रण में हैं। ऐसे में जिस तरह से कांग्रेस नेता ने वंशवाद पर टारगेट किया, इससे देश की मुख्य विपक्षी पार्टी के साथ-साथ आरजेडी सुप्रीमो लालू यादव की फैमिली भी लपेटे में आ गई है। एक तरह से उन्हें भी वंशवाद का मुद्दा परेशान करेगा।
वंशवाद की राजनीति पर क्या बोले थरूर
कांग्रेस के दिग्गज नेता शशि थरूर ने इस बार कहा कि वंशवादी राजनीति भारतीय लोकतंत्र के लिए एक 'गंभीर खतरा' है। अब समय आ गया है कि भारत वंशवाद की जगह योग्यता को स्वीकार्यता प्रदान करे। थरूर ने कहा कि जब राजनीतिक सत्ता का निर्धारण योग्यता, प्रतिबद्धता या जमीनी स्तर पर जुड़ाव के बजाय वंशवाद से होता है, तो शासन की गुणवत्ता प्रभावित होती है। उनके इस लेख ने भारतीय जनता पार्टी को कांग्रेस और राहुल गांधी पर निशाना साधने का मौका दे दिया है।
बीजेपी को कांग्रेस पर पलटवार का मिल गया मौका
बीजेपी ने कांग्रेस पर कटाक्ष करते हुए कहा कि शशि थरूर ‘खतरों के खिलाड़ी’ बन गए हैं और अब तक पता नहीं उनका क्या अंजाम होगा क्योंकि ‘प्रथम परिवार’ (गांधी-नेहरू परिवार) बहुत प्रतिशोधी है। बीजेपी प्रवक्ता शहजाद पूनावाला ने कहा कि मैंने शशि थरूर का एक लेख पढ़ा, जिसमें उन्होंने विस्तार से बताया है कि कैसे भारतीय राजनीति तेजी से एक पारिवारिक व्यवसाय बनती जा रही है।
बिहार चुनाव में कांग्रेस सांसद ने बीजेपी को दे दिया बड़ा हथियार
पूनावाला ने कहा कि थरूर ने अपने लेख की शुरुआत कांग्रेस के प्रथम परिवार का जिक्र करके की है, जिसने कई मायनों में इस विचार को वैधता प्रदान की है कि राजनीतिक पद और सत्ता जन्मसिद्ध अधिकार हैं। इस तरह की बेबाकी, कांग्रेस के भाई-भतीजावाद और नामदारों के खिलाफ बोलना शशि थरूर का एक साहसी कार्य है। उन्हें याद होगा कि 7-8 साल पहले मैंने भी इसी तरह के मुद्दे उठाए थे और हम सभी जानते हैं कि उसके बाद क्या हुआ था। मुझे पूरी उम्मीद है कि शशि थरूर के साथ भी ऐसा ही व्यवहार न हो।
थरूर ने अपने लेख में क्या कुछ लिखा
कांग्रेस सांसद थरूर ने अपने लेख में दो टूक कहा कि दशकों से एक परिवार भारतीय राजनीति पर हावी रहा है और नेहरू-गांधी परिवार का प्रभाव भारत के स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास से जुड़ा हुआ है। लेकिन यह विचार पुख्ता हुआ है कि राजनीतिक नेतृत्व एक जन्मसिद्ध अधिकार हो सकता है। यह विचार भारतीय राजनीति में हर पार्टी, हर क्षेत्र और हर स्तर पर व्याप्त है। थरूर ने आगे कहा कि बीजू पटनायक के निधन के बाद उनके बेटे नवीन ने अपने पिता की खाली लोकसभा सीट जीती। महाराष्ट्र में शिवसेना के संस्थापक बाल ठाकरे ने यह पद अपने बेटे उद्धव को सौंप दिया और अब उद्धव के बेटे आदित्य भी प्रतीक्षारत हैं।
गांधी परिवार ही नहीं, अखिलेश से लेकर चिराग का भी जिक्र
थरूर ने राजनीतिक वंशवाद के और उदाहरण देते हुए कहा कि यही बात समाजवादी पार्टी के संस्थापक मुलायम सिंह यादव पर भी लागू होती है, जो उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री हैं और जिनके बेटे अखिलेश यादव बाद में उसी पद पर रहे। अखिलेश अब सांसद और पार्टी के अध्यक्ष हैं। बिहार में लोक जनशक्ति पार्टी के नेता रामविलास पासवान के बाद उनके बेटे चिराग पासवान ने पार्टी की कमान संभाली। उन्होंने जम्मू-कश्मीर, तेलंगाना, पंजाब और तमिलनाडु में भी वंशवादी राजनीति की मिसालें दीं।
पाकिस्तान-बांग्लादेश को लेकर थरूर ने क्या कहा
थरूर ने यह भी तर्क दिया कि यह (वंशवादी राजनीति) केवल कुछ प्रमुख परिवारों तक ही सीमित नहीं है, बल्कि ग्राम सभाओं से लेकर संसद तक, भारतीय शासन के ताने-बाने में गहराई से समाई हुई है। उन्होंने पाकिस्तान में भुट्टो और शरीफ परिवार, बांग्लादेश में शेख और ज़िया परिवार तथा श्रीलंका में भंडारनायके और राजपक्षे परिवार का उदाहरण देते हुए कहा, ‘‘सच कहूं तो, इस तरह की वंशवादी राजनीति पूरे भारतीय उपमहाद्वीप में प्रचलित है।'
वंशवादी मॉडल को लेकर सवाल
थरूर का कहना था कि लेकिन ये भारत के जीवंत लोकतंत्र के साथ खास तौर पर बेमेल लगते हैं। फिर भारत ने वंशवादी मॉडल को इतनी पूरी तरह क्यों अपनाया है? एक कारण यह हो सकता है कि एक परिवार एक ब्रांड के रूप में प्रभावी रूप से काम कर सकता है। अगर मतदाता किसी उम्मीदवार के पिता, चाची या भाई-बहन को स्वीकार करते हैं, तो वे शायद उम्मीदवार को स्वीकार कर लेंगे - विश्वसनीयता बनाने की कोई जरूरत नहीं है।
वंशवादी राजनीति गंभीर खतरा- थरूर
थरूर ने इस बात पर जोर दिया कि वंशवादी राजनीति भारतीय लोकतंत्र के लिए एक गंभीर खतरा है। उन्होंने कहा कि जब राजनीतिक सत्ता का निर्धारण योग्यता, प्रतिबद्धता या जमीनी स्तर पर जुड़ाव के बजाय वंश से होता है, तो शासन की गुणवत्ता प्रभावित होती है। कांग्रेस सांसद ने इस लेख के जरिए सीधे तौर पर राहुल गांधी और प्रियंका गांधी वाड्रा पर ही टारगेट किया है।
पहली बार नहीं जब थरूर ने बढ़ाई कांग्रेस की टेंशनये कोई पहली बार नहीं है जब शशि थरूर ने इस तरह का बयान देकर कांग्रेस आलाकमान की मुश्किलें बढ़ाई हैं। थरूर का ये बयान भारत-पाकिस्तान संघर्ष और पहलगाम हमले के बाद राजनयिक प्रयासों पर उनकी टिप्पणियों को लेकर उठे विवाद के कुछ सप्ताह बाद आया है। उस समय उनकी टिप्पणियां कांग्रेस के रुख से अलग थीं और कई पार्टी नेताओं ने उनकी मंशा पर सवाल उठाते हुए उन पर निशाना साधा था।
शशि थरूर ने कैसे बढ़ाई कांग्रेस-आरजेडी की टेंशन
शशि थरूर ने जिस तरह से वंशवाद का मुद्दा उठाया वो चौंकाने वाला है। खास तौर से कांग्रेस जरूर उनके इस लेख से असहज महसूस कर रही होगी। ऐसा इसलिए क्योंकि मामला टाइमिंग का भी है। बिहार चुनाव में 6 नवंबर को पहले दौर की वोटिंग है। कांग्रेस और आरजेडी समेत विपक्षी दल महागठबंधन बनाकर चुनावी रण में हैं। ऐसे में जिस तरह से कांग्रेस नेता ने वंशवाद पर टारगेट किया, इससे देश की मुख्य विपक्षी पार्टी के साथ-साथ आरजेडी सुप्रीमो लालू यादव की फैमिली भी लपेटे में आ गई है। एक तरह से उन्हें भी वंशवाद का मुद्दा परेशान करेगा।
वंशवाद की राजनीति पर क्या बोले थरूर
कांग्रेस के दिग्गज नेता शशि थरूर ने इस बार कहा कि वंशवादी राजनीति भारतीय लोकतंत्र के लिए एक 'गंभीर खतरा' है। अब समय आ गया है कि भारत वंशवाद की जगह योग्यता को स्वीकार्यता प्रदान करे। थरूर ने कहा कि जब राजनीतिक सत्ता का निर्धारण योग्यता, प्रतिबद्धता या जमीनी स्तर पर जुड़ाव के बजाय वंशवाद से होता है, तो शासन की गुणवत्ता प्रभावित होती है। उनके इस लेख ने भारतीय जनता पार्टी को कांग्रेस और राहुल गांधी पर निशाना साधने का मौका दे दिया है।
बीजेपी को कांग्रेस पर पलटवार का मिल गया मौका
बीजेपी ने कांग्रेस पर कटाक्ष करते हुए कहा कि शशि थरूर ‘खतरों के खिलाड़ी’ बन गए हैं और अब तक पता नहीं उनका क्या अंजाम होगा क्योंकि ‘प्रथम परिवार’ (गांधी-नेहरू परिवार) बहुत प्रतिशोधी है। बीजेपी प्रवक्ता शहजाद पूनावाला ने कहा कि मैंने शशि थरूर का एक लेख पढ़ा, जिसमें उन्होंने विस्तार से बताया है कि कैसे भारतीय राजनीति तेजी से एक पारिवारिक व्यवसाय बनती जा रही है।
बिहार चुनाव में कांग्रेस सांसद ने बीजेपी को दे दिया बड़ा हथियार
पूनावाला ने कहा कि थरूर ने अपने लेख की शुरुआत कांग्रेस के प्रथम परिवार का जिक्र करके की है, जिसने कई मायनों में इस विचार को वैधता प्रदान की है कि राजनीतिक पद और सत्ता जन्मसिद्ध अधिकार हैं। इस तरह की बेबाकी, कांग्रेस के भाई-भतीजावाद और नामदारों के खिलाफ बोलना शशि थरूर का एक साहसी कार्य है। उन्हें याद होगा कि 7-8 साल पहले मैंने भी इसी तरह के मुद्दे उठाए थे और हम सभी जानते हैं कि उसके बाद क्या हुआ था। मुझे पूरी उम्मीद है कि शशि थरूर के साथ भी ऐसा ही व्यवहार न हो।
थरूर ने अपने लेख में क्या कुछ लिखा
कांग्रेस सांसद थरूर ने अपने लेख में दो टूक कहा कि दशकों से एक परिवार भारतीय राजनीति पर हावी रहा है और नेहरू-गांधी परिवार का प्रभाव भारत के स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास से जुड़ा हुआ है। लेकिन यह विचार पुख्ता हुआ है कि राजनीतिक नेतृत्व एक जन्मसिद्ध अधिकार हो सकता है। यह विचार भारतीय राजनीति में हर पार्टी, हर क्षेत्र और हर स्तर पर व्याप्त है। थरूर ने आगे कहा कि बीजू पटनायक के निधन के बाद उनके बेटे नवीन ने अपने पिता की खाली लोकसभा सीट जीती। महाराष्ट्र में शिवसेना के संस्थापक बाल ठाकरे ने यह पद अपने बेटे उद्धव को सौंप दिया और अब उद्धव के बेटे आदित्य भी प्रतीक्षारत हैं।
गांधी परिवार ही नहीं, अखिलेश से लेकर चिराग का भी जिक्र
थरूर ने राजनीतिक वंशवाद के और उदाहरण देते हुए कहा कि यही बात समाजवादी पार्टी के संस्थापक मुलायम सिंह यादव पर भी लागू होती है, जो उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री हैं और जिनके बेटे अखिलेश यादव बाद में उसी पद पर रहे। अखिलेश अब सांसद और पार्टी के अध्यक्ष हैं। बिहार में लोक जनशक्ति पार्टी के नेता रामविलास पासवान के बाद उनके बेटे चिराग पासवान ने पार्टी की कमान संभाली। उन्होंने जम्मू-कश्मीर, तेलंगाना, पंजाब और तमिलनाडु में भी वंशवादी राजनीति की मिसालें दीं।
पाकिस्तान-बांग्लादेश को लेकर थरूर ने क्या कहा
थरूर ने यह भी तर्क दिया कि यह (वंशवादी राजनीति) केवल कुछ प्रमुख परिवारों तक ही सीमित नहीं है, बल्कि ग्राम सभाओं से लेकर संसद तक, भारतीय शासन के ताने-बाने में गहराई से समाई हुई है। उन्होंने पाकिस्तान में भुट्टो और शरीफ परिवार, बांग्लादेश में शेख और ज़िया परिवार तथा श्रीलंका में भंडारनायके और राजपक्षे परिवार का उदाहरण देते हुए कहा, ‘‘सच कहूं तो, इस तरह की वंशवादी राजनीति पूरे भारतीय उपमहाद्वीप में प्रचलित है।'
वंशवादी मॉडल को लेकर सवाल
थरूर का कहना था कि लेकिन ये भारत के जीवंत लोकतंत्र के साथ खास तौर पर बेमेल लगते हैं। फिर भारत ने वंशवादी मॉडल को इतनी पूरी तरह क्यों अपनाया है? एक कारण यह हो सकता है कि एक परिवार एक ब्रांड के रूप में प्रभावी रूप से काम कर सकता है। अगर मतदाता किसी उम्मीदवार के पिता, चाची या भाई-बहन को स्वीकार करते हैं, तो वे शायद उम्मीदवार को स्वीकार कर लेंगे - विश्वसनीयता बनाने की कोई जरूरत नहीं है।
वंशवादी राजनीति गंभीर खतरा- थरूर
थरूर ने इस बात पर जोर दिया कि वंशवादी राजनीति भारतीय लोकतंत्र के लिए एक गंभीर खतरा है। उन्होंने कहा कि जब राजनीतिक सत्ता का निर्धारण योग्यता, प्रतिबद्धता या जमीनी स्तर पर जुड़ाव के बजाय वंश से होता है, तो शासन की गुणवत्ता प्रभावित होती है। कांग्रेस सांसद ने इस लेख के जरिए सीधे तौर पर राहुल गांधी और प्रियंका गांधी वाड्रा पर ही टारगेट किया है।
पहली बार नहीं जब थरूर ने बढ़ाई कांग्रेस की टेंशनये कोई पहली बार नहीं है जब शशि थरूर ने इस तरह का बयान देकर कांग्रेस आलाकमान की मुश्किलें बढ़ाई हैं। थरूर का ये बयान भारत-पाकिस्तान संघर्ष और पहलगाम हमले के बाद राजनयिक प्रयासों पर उनकी टिप्पणियों को लेकर उठे विवाद के कुछ सप्ताह बाद आया है। उस समय उनकी टिप्पणियां कांग्रेस के रुख से अलग थीं और कई पार्टी नेताओं ने उनकी मंशा पर सवाल उठाते हुए उन पर निशाना साधा था।
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