मथुरा: प्रेमानंद महाराज से आशीर्वाद लेने पहुंची महिला कथावाचक देवी चित्रलेखा ने उनसे मन के अहम सवाल पूछे। इस पर प्रेमानंद ने उन्हें समझाते हुए देश के वीर सैनिकों और तिरंगे का उदाहरण समझाते हुए समाधाम बताया। इसके साथ ही प्रेमानंद महाराज ने दूसरों के हित के बारे में सोचने और गौसेवा कार्य के लिए चित्रलेखा को साधुवाद दिया।
मथुरा स्थित आश्रम पहुंचीं चित्रलेखा ने पूछा कि मेरा घर ब्रज क्षेत्र में ही आता है लेकिन यहां जन्म लेने के बाद भी ब्रज वास नहीं होता है। इस पर प्रेमानंद जी महाराज ने कहा- अगर हम बृजेंद्र नंदन के आश्रित हैं और ब्रज किशोरी के चरणों का चिंतन करते हैं कि हमें यह सेवा का अवसर मिले कि हम समाज के सभी लोगों को जगाकर नाम रूप लीला धाम में लगें तो हमें फिर इस बात का कोई पश्चाताप नहीं होना चाहिए कि हमें धाम वास नहीं मिल रहा है। ब्रज के 84 कोस में वास नहीं मिल रहा है। हम उनकी सेवा में ही तत्पर हैं। बहुत से हमारे सिद्ध महापुरुषों ने बाहर जाकर लोगों को जागृत किया है।
उन्होंने कहा कि अगर संत, वैष्णव, भागवत प्रवक्ता, रासाचार्य यह लोग ना जाए ना बहार तो कोई वृंदावन और प्रभु की तरफ जाने ही ना। बहुत से सोए हुए लोग हैं जिनको घसीट कर धार्मिक आचार्य वृंदावन तक लाए। अब हम खुद भी तो रस के द्वारा ही आए हैं। अगर रास ना देखी होती तो हमारे अंदर लोलुपता ही नहीं होती प्रिया प्रीतम की। तो जो आसक्ति बनी वह रस से ही बनी। तो हम लोग भगवान का यश गा रहे हैं हमारा शरीर चाहे जहां भी छूटे, हम धाम में ही जाएंगे। यह दृढ़ विश्वास होना चाहिए।
प्रेमानंद ने कहा- हम भले ही धमवासी ना हो पाएं लेकिन धाम उपासी तो हैं। अगर आप धाम और उपासना लिए हो तो भले ही आप अमेरिका रहो लेकिन जब शरीर छूटेगा तो आप वृंदावन में ही आओगे। जैसे भारतीय सैनिक का शरीर कहीं पर भी छोटे उसका शरीर तिरंगे में लपेटकर वापस भारत ही आएगा। ऐसे ही धाम का जीव चाहे कहीं भी शरीर छोड़े, वह धाम ही आएगा। अब हम लोग धाम के शरणागत हैं। गुरु के शरणागत हैं। नाम के शरणागत हैं। इसीलिए पश्चाताप ना करें और खूब उत्साह पूर्वक भगवान की लीला का गुणगान कीजिए और जो अर्थ मिले उससे समाज का परिवार का पालन पोषण करिए।
कौन हैं चित्रलेखा?
हरियाणा के पलवल निवासी कथावाचक चित्रलेखा देवी ने मात्र 4 साल की उम्र से धर्मग्रंथों का अध्ययन शुरू कर दिया था। 9 साल की उम्र में उन्होंने हिंदू धर्म का ज्ञान प्राप्त कर लिया था। चित्रलेखा की चर्चा धार्मिक उपदेशों के साथ ही उनकी सुंदरता के लिए भी होती है। उनके दादा राधा कृष्ण शर्मा और दादी किशनादेवी का झुकाव भी अध्यात्म की तरफ था। चित्रलेखा बचपन में ही बंगाली संत श्रीश्री गिरधारी बाबा की संस्था से जुड़ गईं।
चित्रलेखा देवी कथा और प्रवचन के अलावा बेसहारा और घायल गायों की सेवा भी करती हैं, जिसमें करीब 500 गायों की सेवा की जाती है। वह पलवल में गौ सेवा धाम अस्पताल चलाती हैं। चित्रलेखा शादीशुदा हैं और उनके पति का नाम माधव प्रभु है। देश-विदेश में प्रवचन करने वाली चित्रलेखा के यूट्यूब पर तगड़ी फॉलोइंग है।
मथुरा स्थित आश्रम पहुंचीं चित्रलेखा ने पूछा कि मेरा घर ब्रज क्षेत्र में ही आता है लेकिन यहां जन्म लेने के बाद भी ब्रज वास नहीं होता है। इस पर प्रेमानंद जी महाराज ने कहा- अगर हम बृजेंद्र नंदन के आश्रित हैं और ब्रज किशोरी के चरणों का चिंतन करते हैं कि हमें यह सेवा का अवसर मिले कि हम समाज के सभी लोगों को जगाकर नाम रूप लीला धाम में लगें तो हमें फिर इस बात का कोई पश्चाताप नहीं होना चाहिए कि हमें धाम वास नहीं मिल रहा है। ब्रज के 84 कोस में वास नहीं मिल रहा है। हम उनकी सेवा में ही तत्पर हैं। बहुत से हमारे सिद्ध महापुरुषों ने बाहर जाकर लोगों को जागृत किया है।
उन्होंने कहा कि अगर संत, वैष्णव, भागवत प्रवक्ता, रासाचार्य यह लोग ना जाए ना बहार तो कोई वृंदावन और प्रभु की तरफ जाने ही ना। बहुत से सोए हुए लोग हैं जिनको घसीट कर धार्मिक आचार्य वृंदावन तक लाए। अब हम खुद भी तो रस के द्वारा ही आए हैं। अगर रास ना देखी होती तो हमारे अंदर लोलुपता ही नहीं होती प्रिया प्रीतम की। तो जो आसक्ति बनी वह रस से ही बनी। तो हम लोग भगवान का यश गा रहे हैं हमारा शरीर चाहे जहां भी छूटे, हम धाम में ही जाएंगे। यह दृढ़ विश्वास होना चाहिए।
प्रेमानंद ने कहा- हम भले ही धमवासी ना हो पाएं लेकिन धाम उपासी तो हैं। अगर आप धाम और उपासना लिए हो तो भले ही आप अमेरिका रहो लेकिन जब शरीर छूटेगा तो आप वृंदावन में ही आओगे। जैसे भारतीय सैनिक का शरीर कहीं पर भी छोटे उसका शरीर तिरंगे में लपेटकर वापस भारत ही आएगा। ऐसे ही धाम का जीव चाहे कहीं भी शरीर छोड़े, वह धाम ही आएगा। अब हम लोग धाम के शरणागत हैं। गुरु के शरणागत हैं। नाम के शरणागत हैं। इसीलिए पश्चाताप ना करें और खूब उत्साह पूर्वक भगवान की लीला का गुणगान कीजिए और जो अर्थ मिले उससे समाज का परिवार का पालन पोषण करिए।
कौन हैं चित्रलेखा?
हरियाणा के पलवल निवासी कथावाचक चित्रलेखा देवी ने मात्र 4 साल की उम्र से धर्मग्रंथों का अध्ययन शुरू कर दिया था। 9 साल की उम्र में उन्होंने हिंदू धर्म का ज्ञान प्राप्त कर लिया था। चित्रलेखा की चर्चा धार्मिक उपदेशों के साथ ही उनकी सुंदरता के लिए भी होती है। उनके दादा राधा कृष्ण शर्मा और दादी किशनादेवी का झुकाव भी अध्यात्म की तरफ था। चित्रलेखा बचपन में ही बंगाली संत श्रीश्री गिरधारी बाबा की संस्था से जुड़ गईं।
चित्रलेखा देवी कथा और प्रवचन के अलावा बेसहारा और घायल गायों की सेवा भी करती हैं, जिसमें करीब 500 गायों की सेवा की जाती है। वह पलवल में गौ सेवा धाम अस्पताल चलाती हैं। चित्रलेखा शादीशुदा हैं और उनके पति का नाम माधव प्रभु है। देश-विदेश में प्रवचन करने वाली चित्रलेखा के यूट्यूब पर तगड़ी फॉलोइंग है।
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