नई दिल्ली: भारत और पाकिस्तान के बीच सैन्य संघर्ष फिलहाल रुका हुआ है लेकिन हमलों का खतरा अभी भी बना हुआ है। सीमा पार से आतंकवादियों की घुसपैठ और युवाओं की भर्ती की कोशिश अभी भी जारी है। इसे रोकने के लिए सख्त कदम उठाए जा रहे हैं। साथ ही यह भी तय है कि अब 1990 के दशक जैसे हालात नहीं होंगे। कश्मीर के युवा अब हिंसा से दूर जा रहे हैं। युवाओं को अब नौकरी चाहिए। वे इंटरनेट से जुड़ना चाहते हैं। पर्यटन भी बढ़ रहा है और इससे हालात बदल रहे हैं। सरकार चाहती है कि कश्मीर में शांति बनी रहे। हालांकि, भारत के सामने अभी भी कई चुनौतियां हैं और इन पर ध्यान देना जरूरी है।भारत को पाकिस्तान के साथ किसी भी तरह के संबंध को रोकने की कोशिश करनी होगी। पाकिस्तान PoJK जैसे मुद्दों को उठा सकता है। भारत को इसका विरोध करना होगा। जब तक यह साबित नहीं हो जाता कि आतंकवाद का खतरा कम हो गया है, तब तक सुरक्षा व्यवस्था को बनाए रखना होगा। पर्यटन को बढ़ावा देना होगा। आधुनिक परियोजनाओं पर काम करना होगा। इससे लोगों के जीवन में बदलाव आएगा। उनके दिल और दिमाग में भी बदलाव आएगा।अभी प्रयोग करने का समय नहीं है। सेना को सीमा पर अपनी पकड़ मजबूत रखनी होगी। ऑपरेशन सिंदूर के बाद एक नई रणनीति बनानी होगी। AI (आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस) से चलने वाले निगरानी और खुफिया सिस्टम को विकसित करना होगा। 22 अप्रैल को जब पहलगाम में आतंकी हमले की खबर आई, तो ऐसा लगा जैसे हम पुराने दिनों में वापस चले गए हैं। यह हमला पाकिस्तान के इशारे पर हुआ था। Asim Munir ने पाकिस्तान के लोगों के सामने 'Two Nation Theory' की बात की थी। इसके बाद यह हमला हुआ। पहलगाम हमला यह बताता है कि पाकिस्तान अभी भी 'हजार घाव' देने की नीति पर चल रहा है।अनुच्छेद 370 को हटाने के बाद कश्मीर में शांति आई थी। लेकिन यह हमला उस शांति को भंग करने की कोशिश थी। मार्च में जब मैं कश्मीर गया था, तो मैंने देखा कि वहां सब कुछ ठीक चल रहा है लेकिन मुझे खतरे का भी अंदेशा था। पाकिस्तान नहीं चाहता कि कश्मीर में शांति रहे। श्रीनगर हवाई अड्डे पर हर दिन 93 उड़ानें आ रही है। हालांकि पहलगाम हमले का जवाब भारत ने इस बार अलग तरह से दिया। हमले की जांच चल रही है लेकिन ऑपरेशन सिंदूर का जम्मू-कश्मीर पर क्या असर हुआ, इस पर ध्यान देना जरूरी है।कभी-कभी युद्ध जीतने के बाद भी हालात खराब हो जाते हैं। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि दुश्मन छुपकर हमला करता रहता है। तकनीकी रूप से मजबूत होना जरूरी है। लेकिन विचारधारा की लड़ाई भी जरूरी है। पाकिस्तान कभी भी अपनी बुरी आदतों से बाज नहीं आएगा। 1971 में हारने के बाद उसने छुपकर हमले किए। वह ऐसा फिर से कर सकता है लेकिन वह सफल नहीं होगा। पाकिस्तान की सेना कई समस्याओं से जूझ रही है। वहां आर्थिक संकट है। राजनीतिक अस्थिरता है। इसलिए वह छुपकर हमले कर सकती है। वह अपनी पुरानी रणनीति को नहीं छोड़ेगी। पहलगाम हमला भारत की परीक्षा लेने की कोशिश थी। 2016 और 2019 में सर्जिकल स्ट्राइक और बालाकोट हमले भारत की ओर से एक संदेश थे। ऑपरेशन सिंदूर ने यह संदेश दिया कि भारत अब और बर्दाश्त नहीं करेगा लेकिन छुपकर किए जाने वाले हमलों को रोकना मुश्किल है। भारत कश्मीर में अपनी रणनीति बदल रहा है। अब लड़ाई खून से नहीं, बल्कि वोटों, इंटरनेट और पुलों से लड़ी जाएगी। लेकिन तलवार हमेशा तैयार रखनी होगी। (लेखक -श्रीनगर स्थित चिनार कोर के पूर्व कमांडर हैं)
You may also like
बिहार के कॉलेजों में प्रिंसिपल की नियुक्ति में नहीं चलेगी 'लॉबिंग', राजभवन हुआ सख्त, अब होगी निगरानी, जानें
पाकिस्तान 1 करोड़ लोगों को खाना नहीं दे पा रहा और भारत से जंग लड़ने चला, UN ने खोली 'कंगाल मुल्क' की पोल
महाराष्ट्रः बुलेट ट्रेन का पता नहीं, संकट में मुंबई के लोकल ट्रेन यात्री, भयंकर भीड़ बढ़ा रही हताशा
कियारा आडवाणी का बिकिनी लुक 'वॉर 2' में बना चर्चा का विषय
आखिर क्या हुआ था दिग्वेश राठी के साथ? अभिषेक शर्मा ने मैच के बाद किया हैरतअंगेज खुलासा