नई दिल्ली : अमेरिका में हर नया दिन अंतर्राष्ट्रीय छात्रों के लिए नई चुनौतियां ला रहा है। दो दिन पहले ही अंतर्राष्ट्रीय छात्रों के वीजा इंटरव्यू पर रोक को लेकर US विदेश मंत्रालय की ओर से दूतावासों और कांसुलेट को एक संदेश भेजने की खबर सामने ही आई थी कि ट्रंप प्रशासन का एक और सख्त रुख सामने आ गया है। ट्रंप ने कहा है कि हार्वर्ड यूनिवर्सिटी को अपने अंतर्राष्ट्रीय छात्रों की संख्या 15 % तक सीमित करनी होगी, जिससे कि अमेरिकी छात्रों को यहां दाखिले में आसानी होगी। वहीं विदेश मंत्री रूबियो ने साफ कह दिया है कि कम्युनिस्ट पार्टी से संबंध रखने वाले चीनी छात्रों के वीजा रद्द होंगे।
ट्रंप बनाम हार्वर्ड
24 अप्रैल की एक सोशल मीडिया पोस्ट में राष्ट्रपति ट्रंप ने कहा था कि यूनिवर्सिटी ने पूरी दुनिया से छात्रों को दाखिला दिया है, जो कि हमारे देश को तहस नहस करना चाहते हैं। वहीं 30 अप्रैल को हुई एक कैबिनेट बैठक में ट्रंप ने हार्वर्ड की टीम की आलोचना करते हुए कहा था कि ये छात्र कहां से आ रहे हैं ? वहां के छात्रों और प्रोफेसरों का रवैया अमेरिकी नहीं है। हालांकि हार्वर्ड अकेला नहीं है, दस दूसरे विश्वविद्यालयों पर भी ट्रंप ने अपनी सख्ती करनी शुरू की है।
यूनिवर्सिटीज की फेडरल फंडिंग पर नजर
सरकार ने दो दिन पहले ही संघीय एजेंसियों को हार्वर्ड के साथ करीब 100 मिलियन डॉलर के कॉन्ट्रैक्ट रद्द करने को कहा है। टैक्स में दी जा रही छूट वापस लेने की धमकी भी दी है.ये तब है कि जब $3.2 बिलियन की धनराशि पर पहले से ही रोक लगा दी गई है। हालांकि फंड कटौती का मामला कोर्ट में लंबित है। इसके अलावा अमेरिका की ब्राउन यूनिवर्सिटी,कोलंबिया विश्वविद्यालय, कॉर्नेल, नॉर्थवेस्टर्न , पेंसिल्वेनिया यूनिवर्सिटी और प्रिंसटन भी ट्रंप सरकार के निशाने पर रही हैं। इनमें से कुछ के फंड में पहले से कटौती कर दी गई है, जबकि कुछ पर संकट मंडरा रहा है।
सख्त है ट्रंप प्रशासन
अमेरिका की शिक्षा मंत्री लिंडा मैकमोहन सीएनबीसी को दिए एक इंटरव्यू में ये साफ कर दिया है कि अमेरिकी कॉलेज चाहते हैं कि उनकी संघीय फंडिंग ना रुके तो बेहद जरूरी है कि उन्हें ट्रंप प्रशासन के साथ तालमेल करना ही होगा। उन्होंने कहा कि कानून के दायरे में रहकर विश्वविद्यालयों को रिसर्च कायम रखना चाहिए। साफ है प्रशासन इस मुद्दे पर किसी तरह की नर्मी नहीं दिखाने वाला
टकराव की वजह क्या है
ट्रंप प्रशासन ने बीती 11 अप्रैल को हार्वर्ड के सामने कई कठोर मांगें रखी थी, जिनमें उदारवादी कार्यक्रमों और छात्र आंदोलनों पर कड़ी निगरानी रखना भी शामिल था। एक मामला फेस्क मास्क पर प्रतिबंध लगाने और विरोध प्रदर्शन में हिस्सा लेने वाले छात्रों को सस्पेंड करने जैसे कदम उठाना शामिल था। यूनिवर्सिटी ने ये बातें नहीं मानी। मामले की शुरुआत अक्तूबर 2023 के बाद इजरायल-हमास संघर्ष के मद्देनजर कैंपस में फिलिस्तीन समर्थन में प्रदर्शनों के सामने आने से हुई, जिसके बाद उस वक्त के हार्वर्ड अध्यक्ष क्लॉडिन गे को कांग्रेस में भी बुलाया गया था। हालांकि गे इस्तीफ़ा दे दिया था और एलन गार्बर ने पद संभाला। गार्बर फिलहाल सरकार के सामने झुकने के मूड में नहीं हैं।
विचारधारा है असल वजह
जानकार मानते हैं कि 1636 में अस्तित्व में आए हार्वर्ड पर हमला उदारवादी संस्थाओं को अपने खेमे में लाने की कोशिश है। ट्रंप प्रशासन मानता हैं कि ये कॉलेज यहूदी विरोधी और हमास समर्थन को कंट्रोल करने में नाकाम रहे हैं। घरेलू स्तर पर जिस तरह ट्रंप मीडिया और शिक्षा जगत को कथित तौर पर वामपंथी पकड़ से बाहर निकालने की कोशिश कर रहे हैं, उसे वो मेक अमेरिका ग्रेट अगेन के नरेटिव से जोड़ने की कोशिश करते दिख रहे हैं । खासतौर से हार्वर्ड को लेकर सख्ती के रोज नए आदेश इसी का संकेत देते हैं।
ट्रंप बनाम हार्वर्ड
24 अप्रैल की एक सोशल मीडिया पोस्ट में राष्ट्रपति ट्रंप ने कहा था कि यूनिवर्सिटी ने पूरी दुनिया से छात्रों को दाखिला दिया है, जो कि हमारे देश को तहस नहस करना चाहते हैं। वहीं 30 अप्रैल को हुई एक कैबिनेट बैठक में ट्रंप ने हार्वर्ड की टीम की आलोचना करते हुए कहा था कि ये छात्र कहां से आ रहे हैं ? वहां के छात्रों और प्रोफेसरों का रवैया अमेरिकी नहीं है। हालांकि हार्वर्ड अकेला नहीं है, दस दूसरे विश्वविद्यालयों पर भी ट्रंप ने अपनी सख्ती करनी शुरू की है।
यूनिवर्सिटीज की फेडरल फंडिंग पर नजर
सरकार ने दो दिन पहले ही संघीय एजेंसियों को हार्वर्ड के साथ करीब 100 मिलियन डॉलर के कॉन्ट्रैक्ट रद्द करने को कहा है। टैक्स में दी जा रही छूट वापस लेने की धमकी भी दी है.ये तब है कि जब $3.2 बिलियन की धनराशि पर पहले से ही रोक लगा दी गई है। हालांकि फंड कटौती का मामला कोर्ट में लंबित है। इसके अलावा अमेरिका की ब्राउन यूनिवर्सिटी,कोलंबिया विश्वविद्यालय, कॉर्नेल, नॉर्थवेस्टर्न , पेंसिल्वेनिया यूनिवर्सिटी और प्रिंसटन भी ट्रंप सरकार के निशाने पर रही हैं। इनमें से कुछ के फंड में पहले से कटौती कर दी गई है, जबकि कुछ पर संकट मंडरा रहा है।
सख्त है ट्रंप प्रशासन
अमेरिका की शिक्षा मंत्री लिंडा मैकमोहन सीएनबीसी को दिए एक इंटरव्यू में ये साफ कर दिया है कि अमेरिकी कॉलेज चाहते हैं कि उनकी संघीय फंडिंग ना रुके तो बेहद जरूरी है कि उन्हें ट्रंप प्रशासन के साथ तालमेल करना ही होगा। उन्होंने कहा कि कानून के दायरे में रहकर विश्वविद्यालयों को रिसर्च कायम रखना चाहिए। साफ है प्रशासन इस मुद्दे पर किसी तरह की नर्मी नहीं दिखाने वाला
टकराव की वजह क्या है
ट्रंप प्रशासन ने बीती 11 अप्रैल को हार्वर्ड के सामने कई कठोर मांगें रखी थी, जिनमें उदारवादी कार्यक्रमों और छात्र आंदोलनों पर कड़ी निगरानी रखना भी शामिल था। एक मामला फेस्क मास्क पर प्रतिबंध लगाने और विरोध प्रदर्शन में हिस्सा लेने वाले छात्रों को सस्पेंड करने जैसे कदम उठाना शामिल था। यूनिवर्सिटी ने ये बातें नहीं मानी। मामले की शुरुआत अक्तूबर 2023 के बाद इजरायल-हमास संघर्ष के मद्देनजर कैंपस में फिलिस्तीन समर्थन में प्रदर्शनों के सामने आने से हुई, जिसके बाद उस वक्त के हार्वर्ड अध्यक्ष क्लॉडिन गे को कांग्रेस में भी बुलाया गया था। हालांकि गे इस्तीफ़ा दे दिया था और एलन गार्बर ने पद संभाला। गार्बर फिलहाल सरकार के सामने झुकने के मूड में नहीं हैं।
विचारधारा है असल वजह
जानकार मानते हैं कि 1636 में अस्तित्व में आए हार्वर्ड पर हमला उदारवादी संस्थाओं को अपने खेमे में लाने की कोशिश है। ट्रंप प्रशासन मानता हैं कि ये कॉलेज यहूदी विरोधी और हमास समर्थन को कंट्रोल करने में नाकाम रहे हैं। घरेलू स्तर पर जिस तरह ट्रंप मीडिया और शिक्षा जगत को कथित तौर पर वामपंथी पकड़ से बाहर निकालने की कोशिश कर रहे हैं, उसे वो मेक अमेरिका ग्रेट अगेन के नरेटिव से जोड़ने की कोशिश करते दिख रहे हैं । खासतौर से हार्वर्ड को लेकर सख्ती के रोज नए आदेश इसी का संकेत देते हैं।
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