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मुकेश अंबानी के दोस्त लैरी फिंक कौन हैं जिनसे चीन भी खाता है खौफ, हाथ में है पूरी दुनिया की चाबी

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नई दिल्ली: भारत और एशिया के सबसे बड़े रईस मुकेश अंबानी की नजर देश में तेजी से बढ़ रही म्यूचुअल फंड इंडस्ट्री पर है। अप्रैल के अंत तक इस इंडस्ट्री का एसेट अंडर मैनेजमेंट 70 लाख करोड़ रुपये था। पिछले 10 साल से यह इंडस्ट्री सालाना 18% की रफ्तार से बढ़ रही है। अंबानी की कंपनी जियो फाइनेंशियल सर्विसेज लिमिटेड (JFSL) ने इसके लिए दुनिया की सबसे बड़ी एसेट मैनेजमेंट कंपनी ब्लैकरॉक के साथ हाथ मिलाया है। दोनों कंपनियों ने एक जॉइंट वेंचर जियोब्लैकरॉक एसेट मैनेजमेंट प्राइवेट लिमिटेड बनाई है। इसे भारत में बिजनस शुरू करने के लिए सेबी से मंजूरी मिल गई है। ब्लैकरॉक की स्थापना लैरी फिंक ने की थी जिन्हें आज दुनिया का सबसे ताकतवर शख्स माना जाता है।



ब्लैकरॉक का एसेट अंडर मैनेजमेंट 11.58 ट्रिलियन डॉलर है जो भारत की जीडीपी का करीब तीन गुना है। ब्लैकरॉक की हैसियत का अंदाजा आप इसी बात से लगा सकते हैं कि दुनिया के कुल शेयरों और बॉन्ड्स का 10 फीसदी यही कंपनी संभालती है। ब्लैकरॉक एक तरह से दुनिया का सबसे बड़ा शेडो बैंक है। दुनिया के हर बड़े सेक्टर की बड़ी कंपनी में इसकी हिस्सेदारी है। इसका हेडक्वार्टर अमेरिका में है और इसका इन्वेस्टमेंट पूरी दुनिया में फैला है। ब्लैकरॉक की माइक्रोसॉफ्ट, ऐपल, ऐमजॉन, एनवीडिया, गूगल, मेटा और टेस्ला में भी हिस्सेदारी है।





फिंक की शुरुआत

इस कंपनी की स्थापना फिंक ने 1988 में की थी और आज वह कंपनी के सीईओ और चेयरमैन हैं। उन्होंने पॉलिटिकल साइंस की पढ़ाई की थी लेकिन जल्दी-जल्दी पैसा कमाने के चक्कर में शेयर मार्केट में घुस गए। डेट सिंडिकेशन की शुरुआत करने का श्रेय फिंक को दिया जाता है। 31 साल की उम्र में एक बैंक के एमडी बन गए थे। एक साल में उन्होंने बैंक को एक अरब डॉलर कमाकर दिए। फिंक ने और जोखिम लेना शुरू किया लेकिन एक तिमाही में बैंक को 10 करोड़ डॉलर का घाटा हो गया। इससे बैंक ने उनकी छुट्टी कर दी। साल 1988 में 35 साल की उम्र में फिंक ने खुद की कंपनी खोलने का फैसला किया। तब जाने माने इन्वेस्टर और ब्लैकस्टोन इंक के फाउंडर स्टीव श्वार्जमैन ने उनका हाथ थामा।



ब्लैकस्टोन ने फिंक के साथ पार्टनरशिप की और 50 लाख डॉलर का इन्वेस्टमेंट किया। फिंक को सबसे पहले जीई ने कुछ एसेट संभालने को दी। फिंक ने इस काम को बखूबी अंजाम दिया। फिर तो उनकी गाड़ी चल निकली। महज पांच साल में कंपनी का एसेट अंडर मैनेजमेंट 20 अरब डॉलर जा पहुंचा। लेकिन फिंक और स्टीव में धीरे-धीरे मतभेद हो गए। फिंक ने इसके बाद अपनी अलग कंपनी ब्लैकरॉक बना ली। इसके बाद तो फिंक ने पीछे मुड़कर नहीं देखा। आज ब्लैकरॉक दुनियाभर में कंपनियों और सरकारों के एसेट को मैनेज करती है। इनमें पेंशन फंड भी शामिल है।





संकटमोचक की भूमिका

ब्लैकरॉक को दुनिया के सबसे प्रभावशाली फाइनेंशियल इंस्टीट्यूशन का अवॉर्ड भी मिल चुका है। इसकी ताकत का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि चीन की सरकार भी इसे अपने यहां आने से नहीं रोक पाई थी। अमेरिका की कई वित्तीय कंपनियों को आजतक अमेरिका में कारोबार की अनुमति नहीं मिली है। साल 2008 में जब फाइनेंशियल क्राइसिस के कारण बड़ी-बड़ी कंपनियां सकते में थी तो अमेरिका की सरकार ने ब्लैकरॉक का सहारा लिया। हालांकि कहा जाता है कि इस क्राइसिस की जड़ में ब्लैकरॉक ही थी। इसके बाद जब 2020 में कोरोना महामारी के कारण जब बॉन्ड मार्केट बुरी तरह हिल गया था तो एक बार फिर ब्लैकरॉक ने स्थिति संभाली थी।



फिंक अक्तूबर 2023 में भारत आए थे। तब उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मुकेश अंबानी के साथ मुलाकात की थी। फिंक ने नवी मुंबई में जियो कैंपस और बांद्रा कुर्ला कॉम्प्लेक्स में रिलायंस के रिटेल हब का दौरा किया खा। साथ ही उन्होंने रिलायंस की सीनियर लीडरशिप से भी मुलाकात की थी। उससे पहले जुलाई में जियो फाइनेंशियल सर्विसेज और ब्लैकरॉक ने एक जॉइंट वेंचर की घोषणा की थी। उसी साल अगस्त में रिलायंस की एजीएम में फिंक ने कहा था कि ब्लैकरॉक भारत में सबसे बड़े निवेशकों में से एक है। ब्लैकरॉक ने 2018 में हेमेंद्र कोठारी की अगुवाई वाले डीएसपी ग्रुप के साथ हाथ मिलाया था। लेकिन फिर इसमें अपनी हिस्सेदारी बेच दी थी।

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