मुंबई: भारत की आर्थिक राजधानी मुंबई न केवल सपनों का शहर है, बल्कि कभी यह अंडरवर्ल्ड का गढ़ भी रही है। 1980 और 1990 के दशक में जब दाऊद इब्राहिम, छोटा राजन, अरुण गवली जैसे गैंगस्टर शहर में आतंक फैला रहे थे, तब मुंबई पुलिस ने उनके खिलाफ मोर्चा खोल दिया। इसी दौर में ‘एनकाउंटर स्पेशलिस्ट’ का नाम उभरा, जिनमें प्रभुल्ल भोसले, रवींद्र आंग्रे, प्रदीप शर्मा, विजय सालस्कर और दया नायक जैसे अफसरों ने अपराधियों पर नकेल कसी।
11 जनवरी 1982 में मुंबई का पहला बड़ा एनकाउंटर मनोहर अर्जुन सुर्वे उर्फ मान्या सुर्वे का हुआ था। इसे पुलिस ने वडाला में अंबेडकर कॉलेज के सामने अंजाम दिया था। यह देश का पहला ज्ञात मुठभेड़ हत्या मानी जाती है। इस एनकाउंटर को अंजाम देने वाले पुलिस अधिकारियों में राजा तांबट और इसाक बागवान शामिल थे। 16 नवंबर 1991 को अंधेरी लोखंडवाला में मनोहर डोलस उर्फ माया डोलस का ATS ने एनकाउंटर किया था।
इसके बाद ही मुंबई में गैंगवॉर और पुलिस कार्रवाई का दौर शुरू हुआ। दाऊद गैंग, छोटा राजन गैंग और अरुण गवली गैंग के सैकड़ों शूटर पुलिस की गोली से ढेर हुए। अनुमान है कि 1990 से 2003 के बीच करीब 600 से अधिक एनकाउंटर हुए, जिनमें दर्जनों कुख्यात अपराधी मारे गए। इस दौर को मुंबई पुलिस का एनकाउंटर राज कहा गया।
2000 के दशक के बाद न्यायपालिका और मानवाधिकार संगठनों के दबाव के चलते एनकाउंटर पर निगरानी बढ़ी। कई मामलों में जांच बैठाई गई और कुछ अफसरों पर फर्जी एनकाउंटर के आरोप भी लगे। इसके बावजूद मुंबई पुलिस की यह नीति अपराध जगत में भय का कारण बनी रही।
हाल के वर्षों में तकनीक, खुफिया जानकारी और साइबर ट्रैकिंग के चलते एनकाउंटर की घटनाएं कम हुई हैं, लेकिन जब भी कोई गंभीर आपराधिक चुनौती सामने आती है, मुंबई पुलिस की यह सख्त छवि अब भी याद की जाती है। एनकाउंटर का इतिहास मुंबई पुलिस के उस दौर की कहानी कहता है, जब गोलियों की आवाज़ से शहर में कानून का राज कायम किया गया था।
27 अक्टूबर, 2008 का राहुल राज एनकाउंटर और 11 नवंबर 2006 में राम नारायण गुप्ता उर्फ लखन भैया को वर्सोवा में एनकाउंटर कर दिया गया था। 23 सितंबर 2024 को अक्षय शिंदे का बदलापुर में एनकाउंटर कर दिया था और इसके बाद 30 अक्टूबर 2025 को पवई में रोहित आर्य का एनकाउंटर किया गया।
11 जनवरी 1982 में मुंबई का पहला बड़ा एनकाउंटर मनोहर अर्जुन सुर्वे उर्फ मान्या सुर्वे का हुआ था। इसे पुलिस ने वडाला में अंबेडकर कॉलेज के सामने अंजाम दिया था। यह देश का पहला ज्ञात मुठभेड़ हत्या मानी जाती है। इस एनकाउंटर को अंजाम देने वाले पुलिस अधिकारियों में राजा तांबट और इसाक बागवान शामिल थे। 16 नवंबर 1991 को अंधेरी लोखंडवाला में मनोहर डोलस उर्फ माया डोलस का ATS ने एनकाउंटर किया था।
इसके बाद ही मुंबई में गैंगवॉर और पुलिस कार्रवाई का दौर शुरू हुआ। दाऊद गैंग, छोटा राजन गैंग और अरुण गवली गैंग के सैकड़ों शूटर पुलिस की गोली से ढेर हुए। अनुमान है कि 1990 से 2003 के बीच करीब 600 से अधिक एनकाउंटर हुए, जिनमें दर्जनों कुख्यात अपराधी मारे गए। इस दौर को मुंबई पुलिस का एनकाउंटर राज कहा गया।
2000 के दशक के बाद न्यायपालिका और मानवाधिकार संगठनों के दबाव के चलते एनकाउंटर पर निगरानी बढ़ी। कई मामलों में जांच बैठाई गई और कुछ अफसरों पर फर्जी एनकाउंटर के आरोप भी लगे। इसके बावजूद मुंबई पुलिस की यह नीति अपराध जगत में भय का कारण बनी रही।
हाल के वर्षों में तकनीक, खुफिया जानकारी और साइबर ट्रैकिंग के चलते एनकाउंटर की घटनाएं कम हुई हैं, लेकिन जब भी कोई गंभीर आपराधिक चुनौती सामने आती है, मुंबई पुलिस की यह सख्त छवि अब भी याद की जाती है। एनकाउंटर का इतिहास मुंबई पुलिस के उस दौर की कहानी कहता है, जब गोलियों की आवाज़ से शहर में कानून का राज कायम किया गया था।
27 अक्टूबर, 2008 का राहुल राज एनकाउंटर और 11 नवंबर 2006 में राम नारायण गुप्ता उर्फ लखन भैया को वर्सोवा में एनकाउंटर कर दिया गया था। 23 सितंबर 2024 को अक्षय शिंदे का बदलापुर में एनकाउंटर कर दिया था और इसके बाद 30 अक्टूबर 2025 को पवई में रोहित आर्य का एनकाउंटर किया गया।
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