मार्गशीर्ष पूर्णिमा के दिन व्रत एवं पूजन करने से सभी सुखों की प्राप्ति होती है। मार्गशीर्ष पूर्णिमा के दिन भगवान विष्णु नारायण की पूजा की जाती है। नियमपूर्वक पवित्र होकर स्नान करके सफेद कपड़े पहनें और आचमन करें इसके बाद व्रत रखने वाला 'ओम नमो नारायण' मंत्र का उच्चारण करें। आसन और गंध पुष्प आदि भगवान को अर्पण करें। भगवान के सामने चौकोर वेदी बनाकर हवन हेतु अग्नि स्थापित करें और उसमें तिल, घी, बूरा आदि की आहूति दें। हवन पूर्ण करने के पश्चात भगवान का पूजन करना चाहिए और अपना व्रत उनको अर्पण करें और कहें-
पोर्णमास्यं निराहारः स्थिता देवतवाज्ञया मोक्ष्यामि पुण्डरीकाक्ष परेडहिन शरण भवा।।
अर्थात् हे देव पुण्डरीकाक्ष! मैं पूर्णिमा को निराहार व्रत रखकर दूसरे दिन आपकी आज्ञा से भोजन करूंगा, आप मुझे अपनी शरण दें। मार्गशीर्ष की पूर्णिमा को चन्द्रमा की पूजा अवश्य की जानी चाहिए, क्योंकि इसी दिन चन्द्रमा को अमृत से सिंचित किया गया था। सायंकाल चन्द्रमा निकलने पर दोनों घुटने पृथ्वी पर टेककर सफेद फूल, अक्षत, चन्दन, जल सहित अर्घ्य दें। अर्घ्य देते समय चन्द्रमा से प्रार्थना करें, 'हे भगवन! रोहिणीपते! आपका जन्म अग्निकुल में हुआ और आप क्षीर सागर में प्रकट हुए हैं, मेरे दिए हुए अर्घ्य को स्वीकार करें। इसके बाद चन्द्रमा को अर्घ्य देकर उनकी ओर मुंह करके हाथ जोड़कर प्रार्थना करें, ‘हे भगवन! आप श्वेत किरणों से सुशोभित हैं, आपको नमस्कार है, आप लक्ष्मी के भाई हैं, आपको नमस्कार है।'
इस प्रकार रात्रि को नारायण भगवान की मूर्ति के पास ही शयन करें। दूसरे दिन सुबह ब्राह्मणों को भोजन कराएं और सामर्थ अनुसार दान देकर विदा करें। इस दिन माता, बहन, पुत्री और परिवार की अन्य स्त्रियों को वस्त्र भी देने चाहिए। जो इस प्रकार व्रत धारण करतें हैं वो पुत्र-पौत्रादि के साथ सुख भोगकर सब पापों से मुक्त हो जाते हैं और अपनी 10 पीढ़ियों के साथ बैकुण्ठ को जाते हैं। मार्गशीर्ष पूर्णिमा का व्रत अत्यंत पुण्यदायी माना गया है। इस दिन भगवान विष्णु और चन्द्रदेव की पूजा से मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है। श्रद्धा से किया गया मार्गशीर्ष पूर्णिमा का व्रत जीवन में सुख, समृद्धि, शांति और पारिवारिक सौहार्द लाता है।
पोर्णमास्यं निराहारः स्थिता देवतवाज्ञया मोक्ष्यामि पुण्डरीकाक्ष परेडहिन शरण भवा।।
अर्थात् हे देव पुण्डरीकाक्ष! मैं पूर्णिमा को निराहार व्रत रखकर दूसरे दिन आपकी आज्ञा से भोजन करूंगा, आप मुझे अपनी शरण दें। मार्गशीर्ष की पूर्णिमा को चन्द्रमा की पूजा अवश्य की जानी चाहिए, क्योंकि इसी दिन चन्द्रमा को अमृत से सिंचित किया गया था। सायंकाल चन्द्रमा निकलने पर दोनों घुटने पृथ्वी पर टेककर सफेद फूल, अक्षत, चन्दन, जल सहित अर्घ्य दें। अर्घ्य देते समय चन्द्रमा से प्रार्थना करें, 'हे भगवन! रोहिणीपते! आपका जन्म अग्निकुल में हुआ और आप क्षीर सागर में प्रकट हुए हैं, मेरे दिए हुए अर्घ्य को स्वीकार करें। इसके बाद चन्द्रमा को अर्घ्य देकर उनकी ओर मुंह करके हाथ जोड़कर प्रार्थना करें, ‘हे भगवन! आप श्वेत किरणों से सुशोभित हैं, आपको नमस्कार है, आप लक्ष्मी के भाई हैं, आपको नमस्कार है।'
इस प्रकार रात्रि को नारायण भगवान की मूर्ति के पास ही शयन करें। दूसरे दिन सुबह ब्राह्मणों को भोजन कराएं और सामर्थ अनुसार दान देकर विदा करें। इस दिन माता, बहन, पुत्री और परिवार की अन्य स्त्रियों को वस्त्र भी देने चाहिए। जो इस प्रकार व्रत धारण करतें हैं वो पुत्र-पौत्रादि के साथ सुख भोगकर सब पापों से मुक्त हो जाते हैं और अपनी 10 पीढ़ियों के साथ बैकुण्ठ को जाते हैं। मार्गशीर्ष पूर्णिमा का व्रत अत्यंत पुण्यदायी माना गया है। इस दिन भगवान विष्णु और चन्द्रदेव की पूजा से मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है। श्रद्धा से किया गया मार्गशीर्ष पूर्णिमा का व्रत जीवन में सुख, समृद्धि, शांति और पारिवारिक सौहार्द लाता है।
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