नई दिल्ली: देश में सर्विसेज सेक्टर रोजगार मुहैया कराने वाला दूसरा बड़ा सेक्टर हैं और इसमें करीब 19 करोड़ लोग काम करते हैं, लेकिन 87% वर्कर्स को प्रॉविडेंट फंड और पेंशन सहित सोशल सिक्योरिटी हासिल नहीं है। नीति आयोग की मंगलवार को जारी एक रिपोर्ट में ये बातें कही गई। नीति आयोग के CEO वी वी आर सुब्रमण्यम ने रिपोर्ट जारी की। सुब्रमण्यम ने कहा, 'इस स्टडी में 3 मुख्य चुनौतियां सामने आई। बड़ी संख्या में लोगों का इनफॉर्मल जॉब्स में होना और खराब जॉब क्वॉलिटी, पुरुष और महिला कामगारों की स्थितियों में बड़ा अंतर और कुछ इलाकों में दूसरों के मुकाबले बेहद कम अवसर।'
रिपोर्ट में कहा गया, 'सर्विसेज का योगदान नैशनल आउटपुट में लगभग आधा है, लेकिन रोजगार के मौकों में इसकी हिस्सेदारी एक तिहाई से भी कम है। ज्यादा जॉब्स पक्की नहीं हैं और कम वेतन वाली हैं। ग्रामीण इलाकों में टोटल वर्कफोर्स का 20% से भी कम हिस्सा सेवा क्षेत्र में है, वहीं शहरों में 60% है। रूरल सर्विसेज में महिलाओं की कमाई पुरुषों के आधे से भी कम है। महिलाएं औसतन 213 रुपये प्रतिदिन पाती हैं, वहीं पुरुषों को औसतन 451 रुपये मिलते हैं।
ट्रेडिशनल बनाम मॉडर्न
मुख्य रूप से ट्रेड, ट्रांसपोर्ट और एजुकेशन में ही सर्विसेज जॉब्स का दो तिहाई से ज्यादा हिस्सा है, लेकिन नए रोजगार पैदा करने की इनकी क्षमता घट रही है। IT, फाइनेंस, हेल्थकेयर, प्रफेशनल सर्विसेज में जॉब्स और सैलरी बढ़ने की क्षमता है, लेकिन इन सेक्टरों का आकार छोटा है।
क्या करना होगा?
रिपोर्ट में कहा गया कि वर्कफोर्स में सेवा क्षेत्र का हिस्सा बढ़ाने के लिए इनफॉर्मल से अधिक से अधिक लोगों को फॉर्मल जॉब्स में लाना होगा। सेल्फ एंप्लॉयड, गिग वर्कसं और MSME वर्कर्स को PF, पेंशन जैसी सोशल सिक्योरिटी देनी होगी। महिलाओं और ग्रामीण युवाओं के लिए स्किलिंग और डिजिटल इन्फ्रास्ट्रक्चर बनाना होगा।
रिपोर्ट में कहा गया, 'सर्विसेज का योगदान नैशनल आउटपुट में लगभग आधा है, लेकिन रोजगार के मौकों में इसकी हिस्सेदारी एक तिहाई से भी कम है। ज्यादा जॉब्स पक्की नहीं हैं और कम वेतन वाली हैं। ग्रामीण इलाकों में टोटल वर्कफोर्स का 20% से भी कम हिस्सा सेवा क्षेत्र में है, वहीं शहरों में 60% है। रूरल सर्विसेज में महिलाओं की कमाई पुरुषों के आधे से भी कम है। महिलाएं औसतन 213 रुपये प्रतिदिन पाती हैं, वहीं पुरुषों को औसतन 451 रुपये मिलते हैं।
ट्रेडिशनल बनाम मॉडर्न
मुख्य रूप से ट्रेड, ट्रांसपोर्ट और एजुकेशन में ही सर्विसेज जॉब्स का दो तिहाई से ज्यादा हिस्सा है, लेकिन नए रोजगार पैदा करने की इनकी क्षमता घट रही है। IT, फाइनेंस, हेल्थकेयर, प्रफेशनल सर्विसेज में जॉब्स और सैलरी बढ़ने की क्षमता है, लेकिन इन सेक्टरों का आकार छोटा है।
क्या करना होगा?
रिपोर्ट में कहा गया कि वर्कफोर्स में सेवा क्षेत्र का हिस्सा बढ़ाने के लिए इनफॉर्मल से अधिक से अधिक लोगों को फॉर्मल जॉब्स में लाना होगा। सेल्फ एंप्लॉयड, गिग वर्कसं और MSME वर्कर्स को PF, पेंशन जैसी सोशल सिक्योरिटी देनी होगी। महिलाओं और ग्रामीण युवाओं के लिए स्किलिंग और डिजिटल इन्फ्रास्ट्रक्चर बनाना होगा।
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