पटना: बिहार के मोकामा के घोसवरी में गुरुवार को प्रशांत किशोर की पार्टी जन सुराज के एक समर्थक की गोली मारकर हत्या कर दी गई। हत्या का आरोप एनडीए के उम्मीदवार अनंत सिंह के समर्थकों पर लगाया जा रहा है। बिहार में विधानसभा चुनाव के बीच इस हिंसक घटना ने 1990 के दशक में लालू यादव के मुख्यमंत्री के कार्यकाल की याद ताजा कर दी है। उस दौर में लालू यादव का निरंकुश शासन था और उनकी पार्टी राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) पर भी अपराधों में संलिप्तता के आरोप लगे थे। तब लालू यादव और तत्कालीन मुख्य चुनाव आयुक्त टीएन शेषन के बीच विवाद काफी चर्चित हुआ था। लालू का अहंकार देखिए कि उन्होंने शेषन की सख्ती से नाराज होकर कहा था-‘‘शेषन पगला सांड जैसे कर रहा है। मालूमे नहीं है कि हम रस्सा बांध के खटाल में बंद कर सकते हैं।’’
मोकामा के घोसवरी में जन सुराज पार्टी के उम्मीदवार पीयूष प्रियदर्शी के काफिले पर हमला किया गया। प्रियदर्शी के चाचा दुलारचंद यादव की गोली मारकर हत्या कर दी गई। इस जघन्य वारदात का आरोप एनडीए के घटक दल जनता दल यूनाईटेड (जेडीयू) प्रत्याशी अनंत सिंह के समर्थकों पर लगा है। बताया जाता है कि दुलारचंद यादव एक दौर में लालू यादव के बेहद करीबी रहे थे।
लालू यादव और टीएन शेषन में हुआ था विवाद राजनीतिक रंजिश की वजह से हुई इस हत्या ने बिहार में आरजेडी नेता लालू यादव के मुख्यमंत्री के कार्यकाल की याद दिला दी है। बिहार के मौजूदा विधानसभा चुनाव में सत्ता पक्ष एनडीए महागठबंधन और खास तौर पर आरजेडी को जिस 'जंगल राज' का हवाला देकर निशाना बना रहा है,यह वही लालू यादव का राज था।
लालू यादव के मुख्यमंत्री के कार्यकाल में बिहार में हिंसा और गुंडागर्दी चरम पर थी। उस दौर में आरजेडी बाहुबलियों (अपराधियों) का पार्टी कहलाती थी। संकर्षण ठाकुर की किताब 'बंधु बिहारी' में लालू यादव और टीएन शेषन के बीच विवाद का जिक्र है। उन्होंने लिखा है कि, सन 1995 में मुख्य चुनाव आयुक्त टीएन शेषन ने बिहार में बेदाग चुनाव संपन्न कराए थे। चट्टान के समान अडिग दृढ संकल्प वाले शेषन ने उस बिहार में चुनाव कराए थे जो स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनावों की कब्रगाह है। उन्होंने पूरे राज्य को अर्धसैनिक बलों की सहायता से अवरुद्ध कर दिया था।
शेषन ने चार पर स्थगित किए थे चुनाव
ठाकुर ने लिखा है कि, ''उन्होंने (शेषन) चार बार चुनाव स्थगित कर दिए थे। वे प्रतिदिन धमकी देते थे कि जरा सी भी आपराधिक गतिविधि का पता चलने पर वे पूरी की पूरी चुनाव प्रक्रिया को रद्द कर देंगे। यह अभियान मुख्य चुनाव आयुक्त और बिहार के मुख्यमंत्री के बीच एक द्वंद्व युद्ध बन गया था। लालू यादव विपक्ष को लेकर अपेक्षाकृत रूप से कम परेशान थे, लेकिन शेषन ने उन्हें चिंता में डाल दिया था।''
किताब में लिखा है- ''वे (लालू यादव) सुबह के अपने दैनिक दरबार में ऊंचे स्वर में शिकायत करते और ऐसी रंगीन धमकियां जारी करते, जो उनके दर्शकों को उमंग से भर देतीं- ‘‘शेषन पगला सांड़ जैसे कर रहा है। मालूमे नहीं है कि हम रस्सा बांध के खटाल में बंद कर सकते हैं।’’ जिस रात शेषन ने अपना चौथा स्थगन आदेश दिल्ली से मुख्यमंत्री कार्यालय में फैक्स किया, लालू यादव खुद भी कुछ हद तक एक भड़के हुए सांड़ की तरह हो गए थे। उन्होंने राज्य के मुख्य निर्वाचन अधिकारी आरजेएम पिल्लई को फोन लगाया, जो एक ठेठ नौकरशाह थे और उन पर ऐसे बरसे जैसे सिर्फ लालू यादव बरस सकते थे- ‘‘एइ जी पिल्लई, हम तुमरा चीफ मिनिस्टर हैं और तुम हमरा अफसर, ई शेषनवा कहां से बीच में टपकता रहता है?’’ इससे पहले कि पिल्लई दूसरी ओर से हकलाते हुए कुछ कहते, मुख्यमंत्री ने धमाकों का दूसरा दौर शुरू कर दिया, ‘‘अउर फैक्स मैसेज भेजता है! ई अमीर लोग का खिलौना लेकर के तुम लोग गरीब लोग के खिलाफ कांस्पीरेसी (षड्यंत्र) करते हो? सब फैक्स-फूक्स उड़ा देंगे, इलेक्शन हो जाने दो।’’
पोलिंग बूथों पर हुई थी कमांडो की तैनाती लेखक मृत्युंजय शर्मा की कुछ अरसे पहले प्रकाशित किताब ”ब्रोकन प्रॉमिसेज: कास्ट, क्राइम एंड पॉलिटिक्स इन बिहार” में भी 1995 के चुनाव का जिक्र किया गया है। शर्मा ने लिखा है कि शेषन ने पारदर्शी तरीके से चुनाव कराने के लिए पंजाब से कमांडो हायर कर लिए थे और बिहार के तमाम पोलिंग बूथ पर तैनात कर दिए थे। खास तौर पर उन बूथों पर जो हिंसा और बूथ कैप्चरिंग के लिए बदनाम थे।
मोकामा के घोसवरी में जन सुराज पार्टी के उम्मीदवार पीयूष प्रियदर्शी के काफिले पर हमला किया गया। प्रियदर्शी के चाचा दुलारचंद यादव की गोली मारकर हत्या कर दी गई। इस जघन्य वारदात का आरोप एनडीए के घटक दल जनता दल यूनाईटेड (जेडीयू) प्रत्याशी अनंत सिंह के समर्थकों पर लगा है। बताया जाता है कि दुलारचंद यादव एक दौर में लालू यादव के बेहद करीबी रहे थे।
लालू यादव और टीएन शेषन में हुआ था विवाद राजनीतिक रंजिश की वजह से हुई इस हत्या ने बिहार में आरजेडी नेता लालू यादव के मुख्यमंत्री के कार्यकाल की याद दिला दी है। बिहार के मौजूदा विधानसभा चुनाव में सत्ता पक्ष एनडीए महागठबंधन और खास तौर पर आरजेडी को जिस 'जंगल राज' का हवाला देकर निशाना बना रहा है,यह वही लालू यादव का राज था।
लालू यादव के मुख्यमंत्री के कार्यकाल में बिहार में हिंसा और गुंडागर्दी चरम पर थी। उस दौर में आरजेडी बाहुबलियों (अपराधियों) का पार्टी कहलाती थी। संकर्षण ठाकुर की किताब 'बंधु बिहारी' में लालू यादव और टीएन शेषन के बीच विवाद का जिक्र है। उन्होंने लिखा है कि, सन 1995 में मुख्य चुनाव आयुक्त टीएन शेषन ने बिहार में बेदाग चुनाव संपन्न कराए थे। चट्टान के समान अडिग दृढ संकल्प वाले शेषन ने उस बिहार में चुनाव कराए थे जो स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनावों की कब्रगाह है। उन्होंने पूरे राज्य को अर्धसैनिक बलों की सहायता से अवरुद्ध कर दिया था।
शेषन ने चार पर स्थगित किए थे चुनाव
ठाकुर ने लिखा है कि, ''उन्होंने (शेषन) चार बार चुनाव स्थगित कर दिए थे। वे प्रतिदिन धमकी देते थे कि जरा सी भी आपराधिक गतिविधि का पता चलने पर वे पूरी की पूरी चुनाव प्रक्रिया को रद्द कर देंगे। यह अभियान मुख्य चुनाव आयुक्त और बिहार के मुख्यमंत्री के बीच एक द्वंद्व युद्ध बन गया था। लालू यादव विपक्ष को लेकर अपेक्षाकृत रूप से कम परेशान थे, लेकिन शेषन ने उन्हें चिंता में डाल दिया था।''
किताब में लिखा है- ''वे (लालू यादव) सुबह के अपने दैनिक दरबार में ऊंचे स्वर में शिकायत करते और ऐसी रंगीन धमकियां जारी करते, जो उनके दर्शकों को उमंग से भर देतीं- ‘‘शेषन पगला सांड़ जैसे कर रहा है। मालूमे नहीं है कि हम रस्सा बांध के खटाल में बंद कर सकते हैं।’’ जिस रात शेषन ने अपना चौथा स्थगन आदेश दिल्ली से मुख्यमंत्री कार्यालय में फैक्स किया, लालू यादव खुद भी कुछ हद तक एक भड़के हुए सांड़ की तरह हो गए थे। उन्होंने राज्य के मुख्य निर्वाचन अधिकारी आरजेएम पिल्लई को फोन लगाया, जो एक ठेठ नौकरशाह थे और उन पर ऐसे बरसे जैसे सिर्फ लालू यादव बरस सकते थे- ‘‘एइ जी पिल्लई, हम तुमरा चीफ मिनिस्टर हैं और तुम हमरा अफसर, ई शेषनवा कहां से बीच में टपकता रहता है?’’ इससे पहले कि पिल्लई दूसरी ओर से हकलाते हुए कुछ कहते, मुख्यमंत्री ने धमाकों का दूसरा दौर शुरू कर दिया, ‘‘अउर फैक्स मैसेज भेजता है! ई अमीर लोग का खिलौना लेकर के तुम लोग गरीब लोग के खिलाफ कांस्पीरेसी (षड्यंत्र) करते हो? सब फैक्स-फूक्स उड़ा देंगे, इलेक्शन हो जाने दो।’’
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