पटना: बिहार में आधी से अधिक आबादी 40 साल से कम उम्र की है। बिहार के यह वे मतदाता हैं जो चुनाव में निर्णायक साबित होने वाले हैं। इन्हीं वोटरों के मुद्दे बिहार विधानसभा चुनाव के केंद्र में आ चुके हैं। बिहार विधानसभा चुनाव में प्रचार शवाब पर है। इस बार के चुनाव में जातिगत समीकरणों के साथ-साथ खास तौर पर युवाओं से जड़ा रोजगार और पलायन का मुद्दा भी जोरों पर है। सत्ताधारी एनडीए और विपक्षी महागठबंधन, दोनों प्रमुख प्रतिद्वंद्वी युवाओं को नौकरी देने और पलायन रोकने के वादे कर रहे हैं। दोनों ही प्रमुख गठबंधनों ने अपने घोषणा पत्रों में सरकारी नौकरियों का जिक्र किया है।
बिहार के 22 साल की औसत उम्र वाले युवाओं के सामने बेरोजगारी एक प्रमुख चुनावी मुद्दा है। राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) के नेता तेजस्वी यादव ने हर घर में सरकारी नौकरी का वादा किया है। यह वादा इन युवाओं के लिए उम्मीद की किरण है। एनडीए ने भी रोजगार देने का वादा तो किया है, लेकिन हर परिवार के एक सदस्य को नौकरी देने जैसा कोई वादा नहीं किया है। एनडीए तेजस्वी के वादे को अव्यावहारिक बता रहा है, लेकिन यह लोकलुभावन वादा कुछ तो असर दिखा ही सकता है।
रोजगार बन गया सबसे बड़ा मुद्दा एनडीए ने अपने घोषणा पत्र में एक करोड़ सरकारी नौकरियां और रोजगार के अवसर देने का वादा किया है। यह घोषणा महागठबंधन के मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार तेजस्वी प्रसाद यादव के उस वादे के चार दिन बाद आई है, जिसमें उन्होंने हर परिवार को एक सरकारी नौकरी देने का ऐलान किया है। अब चुनावी रैलियों और भाषणों में भी रोजगार और पलायन की बातें प्रमुखता से हो रही हैं।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बिहार में दो चुनावी रैलियों में युवाओं को राज्य में ही रोजगार देने का वादा किया, ताकि वे पलायन न करें। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने भी सोशल मीडिया पर अगले पांच सालों में एक करोड़ युवाओं को नौकरी और रोजगार देने का संकल्प व्यक्त किया है। उन्होंने एक्स पर लिखा, “युवाओं को रोजगार देना हमारी सरकार का अगला मुख्य लक्ष्य होगा। हमने फैसला किया है कि एक करोड़ युवाओं को नौकरी और रोजगार के अवसर दिए जाएंगे और हम यह सुनिश्चित करेंगे कि युवाओं को मजबूरी में राज्य से बाहर न जाना पड़े।”
हर परिवार में एक नौकरी का वादा तेजस्वी यादव अपनी हर रैली में सत्ता में आने पर हर परिवार को सरकारी नौकरी देने के साथ-साथ रोजगार पैदा करने के लिए कारखाने और उद्योग लगाने का वादा कर रहे हैं। एक राजनीतिक विशेषज्ञ का मानना है कि तेजस्वी यादव ने एक बार फिर रोजगार को एजेंडा बनाकर अपने विरोधियों पर बढ़त बना ली है। उन्होंने सन 2020 के चुनाव में भी 10 लाख नौकरियों का वादा किया था, जिसके बाद रोजगार चर्चा का एक विषय बन गया था।
अर्थशास्त्री डीएम दिवाकर ने रोजगार और पलायन पर बढ़ते फोकस को एक स्वागत योग्य बदलाव बताया है। उन्होंने कहा, “रोजगार और पलायन अब बड़े मुद्दे बन गए हैं और यह एक अच्छी शुरुआत है। पहले घुसपैठ समेत तरह-तरह की बातें हो रही थीं।” उन्होंने यह भी कहा कि रोजगार पैदा करने और सरकारी क्षेत्रों में खाली पदों को भरने पर ध्यान केंद्रित करने से सरकारी क्षेत्र मजबूत होगा।
तेजस्वी का वादा बहुत चुनौतियों भराबिहार में युवा बेरोजगारी, पलायन, जातिगत समीकरण, मुस्लिम वोट बैंक और महिला मतदाताओं का झुकाव जैसे कई महत्वपूर्ण मुद्दे हैं जो विधानसभा चुनाव को प्रभावित कर सकते हैं। यह मुद्दे राजनीतिक रणनीतियों में प्रतिबिंबित हो रहे हैं।
तेजस्वी यादव ने हर घर में सरकारी नौकरी देने का वादा किया है। हालांकि इस वादे को पूरा करने में भारी चुनौतियां हैं। सवाल उठ रहा है कि सत्ता में आने पर तेजस्वी यादव पांच साल में 1.25 करोड़ से अधिक नौकरियां कैसे देंगे? इसके लिए भारीभरकम राशि कहां से आएगी? केंद्र की एनडीए सरकार तो राज्य की महागठबंधन सरकार की उतनी मदद नहीं करेगी जितनी उसने नीतीश कुमार के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार की की है।
पलायन बिहार की बड़ी समस्यासरकारी नौकरियों के सृजन में कई बाधाएं हैं। यदि तेजस्वी यादव युवा आबादी की निराशा को भुनाने में सफल होते हैं, तो वे पारंपरिक राजनीतिक सीमाओं से परे एक आंदोलन को गति दे सकते हैं। इसके विपरीत आशा जगाने वाले लेकिन अव्यावहारिक ऊंचे वादे पूरे नहीं हुए तो यह महागठबंधन की ऐसी विफलता होगी जिससे वह अपना विश्वास खो देगा और इससे उसका भविष्य भी प्रभावित होगा। नीतीश कुमार लंबे समय से एक व्यावहारिक नेता के रूप में स्थापित हैं।
लाखों बिहारी युवा बेहतर अवसरों के लिए देश और विदेश में पलायन कर रहे हैं। पलायन केवल एक आर्थिक मुद्दा नहीं है, यह राज्य के लोगों को गहरा भावनात्मक, बौद्धिक और सांस्कृतिक नुकसान भी पहुंचाता है। पलायन से परिवार टूटते हैं, समुदाय कमजोर होते हैं। यह मुद्दा मतदाताओं की भावनाओं को आकार देने में महत्वपूर्ण हो सकता है। तेजस्वी यादव और प्रशांत किशोर बिहार से बाहर रहने वाले प्रवासियों की दुर्दशा के मामले को उठा रहे हैं। दूसरी तरफ नीतीश कुमार पलायन को रोकने की किसी कोशिश का दावा करने की स्थिति में नहीं हैं।
बिहार के 22 साल की औसत उम्र वाले युवाओं के सामने बेरोजगारी एक प्रमुख चुनावी मुद्दा है। राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) के नेता तेजस्वी यादव ने हर घर में सरकारी नौकरी का वादा किया है। यह वादा इन युवाओं के लिए उम्मीद की किरण है। एनडीए ने भी रोजगार देने का वादा तो किया है, लेकिन हर परिवार के एक सदस्य को नौकरी देने जैसा कोई वादा नहीं किया है। एनडीए तेजस्वी के वादे को अव्यावहारिक बता रहा है, लेकिन यह लोकलुभावन वादा कुछ तो असर दिखा ही सकता है।
रोजगार बन गया सबसे बड़ा मुद्दा एनडीए ने अपने घोषणा पत्र में एक करोड़ सरकारी नौकरियां और रोजगार के अवसर देने का वादा किया है। यह घोषणा महागठबंधन के मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार तेजस्वी प्रसाद यादव के उस वादे के चार दिन बाद आई है, जिसमें उन्होंने हर परिवार को एक सरकारी नौकरी देने का ऐलान किया है। अब चुनावी रैलियों और भाषणों में भी रोजगार और पलायन की बातें प्रमुखता से हो रही हैं।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बिहार में दो चुनावी रैलियों में युवाओं को राज्य में ही रोजगार देने का वादा किया, ताकि वे पलायन न करें। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने भी सोशल मीडिया पर अगले पांच सालों में एक करोड़ युवाओं को नौकरी और रोजगार देने का संकल्प व्यक्त किया है। उन्होंने एक्स पर लिखा, “युवाओं को रोजगार देना हमारी सरकार का अगला मुख्य लक्ष्य होगा। हमने फैसला किया है कि एक करोड़ युवाओं को नौकरी और रोजगार के अवसर दिए जाएंगे और हम यह सुनिश्चित करेंगे कि युवाओं को मजबूरी में राज्य से बाहर न जाना पड़े।”
हर परिवार में एक नौकरी का वादा तेजस्वी यादव अपनी हर रैली में सत्ता में आने पर हर परिवार को सरकारी नौकरी देने के साथ-साथ रोजगार पैदा करने के लिए कारखाने और उद्योग लगाने का वादा कर रहे हैं। एक राजनीतिक विशेषज्ञ का मानना है कि तेजस्वी यादव ने एक बार फिर रोजगार को एजेंडा बनाकर अपने विरोधियों पर बढ़त बना ली है। उन्होंने सन 2020 के चुनाव में भी 10 लाख नौकरियों का वादा किया था, जिसके बाद रोजगार चर्चा का एक विषय बन गया था।
अर्थशास्त्री डीएम दिवाकर ने रोजगार और पलायन पर बढ़ते फोकस को एक स्वागत योग्य बदलाव बताया है। उन्होंने कहा, “रोजगार और पलायन अब बड़े मुद्दे बन गए हैं और यह एक अच्छी शुरुआत है। पहले घुसपैठ समेत तरह-तरह की बातें हो रही थीं।” उन्होंने यह भी कहा कि रोजगार पैदा करने और सरकारी क्षेत्रों में खाली पदों को भरने पर ध्यान केंद्रित करने से सरकारी क्षेत्र मजबूत होगा।
तेजस्वी का वादा बहुत चुनौतियों भराबिहार में युवा बेरोजगारी, पलायन, जातिगत समीकरण, मुस्लिम वोट बैंक और महिला मतदाताओं का झुकाव जैसे कई महत्वपूर्ण मुद्दे हैं जो विधानसभा चुनाव को प्रभावित कर सकते हैं। यह मुद्दे राजनीतिक रणनीतियों में प्रतिबिंबित हो रहे हैं।
तेजस्वी यादव ने हर घर में सरकारी नौकरी देने का वादा किया है। हालांकि इस वादे को पूरा करने में भारी चुनौतियां हैं। सवाल उठ रहा है कि सत्ता में आने पर तेजस्वी यादव पांच साल में 1.25 करोड़ से अधिक नौकरियां कैसे देंगे? इसके लिए भारीभरकम राशि कहां से आएगी? केंद्र की एनडीए सरकार तो राज्य की महागठबंधन सरकार की उतनी मदद नहीं करेगी जितनी उसने नीतीश कुमार के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार की की है।
पलायन बिहार की बड़ी समस्यासरकारी नौकरियों के सृजन में कई बाधाएं हैं। यदि तेजस्वी यादव युवा आबादी की निराशा को भुनाने में सफल होते हैं, तो वे पारंपरिक राजनीतिक सीमाओं से परे एक आंदोलन को गति दे सकते हैं। इसके विपरीत आशा जगाने वाले लेकिन अव्यावहारिक ऊंचे वादे पूरे नहीं हुए तो यह महागठबंधन की ऐसी विफलता होगी जिससे वह अपना विश्वास खो देगा और इससे उसका भविष्य भी प्रभावित होगा। नीतीश कुमार लंबे समय से एक व्यावहारिक नेता के रूप में स्थापित हैं।
लाखों बिहारी युवा बेहतर अवसरों के लिए देश और विदेश में पलायन कर रहे हैं। पलायन केवल एक आर्थिक मुद्दा नहीं है, यह राज्य के लोगों को गहरा भावनात्मक, बौद्धिक और सांस्कृतिक नुकसान भी पहुंचाता है। पलायन से परिवार टूटते हैं, समुदाय कमजोर होते हैं। यह मुद्दा मतदाताओं की भावनाओं को आकार देने में महत्वपूर्ण हो सकता है। तेजस्वी यादव और प्रशांत किशोर बिहार से बाहर रहने वाले प्रवासियों की दुर्दशा के मामले को उठा रहे हैं। दूसरी तरफ नीतीश कुमार पलायन को रोकने की किसी कोशिश का दावा करने की स्थिति में नहीं हैं।
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