काबुल/बीजिंग/इस्लामाबाद: पाकिस्तान, चीन और अफगानिस्तान के तालिबानी विदेश मंत्री आज बीजिंग में मुलाकात कर रहे हैं। यह मुलाकात ऐसे समय पर हुई है जब ऑपरेशन सिंदूर में पाकिस्तान और चीन की पोल खुल गई। पाकिस्तान को चीन ने हथियार दिए और संप्रभुता की रक्षा का वादा किया लेकिन इसके बाद भी भारत ने जोरदार प्रहार करके अपने इरादे साफ कर दिए। अब पाकिस्तान को यह भी डर सता रहा है कि भारत अफगानिस्तान के जरिए दूसरा मोर्चा खोल सकता है। पाकिस्तान का यह डर तब और बढ़ गया है जब भारतीय विदेश मंत्री एस जयशंकर ने अभी हाल ही में पहली बार अफगानिस्तान के विदेश मंत्री आमिर खान मुत्ताकी से बात की। पाकिस्तान के इस डर को दूर करने के लिए चीन अब आगे आया है। चीन में तालिबानी और पाकिस्तानी विदेश मंत्री मिल रहे हैं और इसमें भारत को लेकर प्रमुखता से बातचीत होने जा रही है। वहीं चीन के डर की एक वजह रूस भी है जो भारत का दशकों से करीबी दोस्त है।पाकिस्तान, चीन और तालिबान के बीच यह दूसरी त्रिपक्षीय मीटिंग है। पाकिस्तान के विदेश मंत्री ने चीन में चीन की कम्युनिस्ट पार्टी के नेताओं के साथ मुलाकात की है। अब उनका चीन के विदेश मंत्री वांग यी से मिलने का कार्यक्रम है। माना जा रहा है कि वांग यी पाकिस्तान और तालिबान के बीच तनाव को कम करने पर जोर देंगे और अफगानिस्तान पर दबाव डालेंगे। पाकिस्तान का आरोप है कि टीटीपी आतंकियों को अफगानिस्तान से सपोर्ट मिल रहा है जो पाकिस्तानी सेना और चीन से जुड़े प्रतिष्ठानों पर हमला कर रहे हैं। चीन की कोशिश है कि सीपीईसी को पाकिस्तान से बढ़ाकर अफगानिस्तान तक बढ़ाया जाए जो बीआरआई का हिस्सा है। पाकिस्तान के साथ नहीं आया तालिबान चीन दोनों देशों के बीच सुरक्षा सहयोग को भी बढ़ाना चाहता है। इससे पहले काबुल में भी तीनों देशों के प्रतिनिधियों के मुलाकात हुई थी। चीन के राजदूत ने पाकिस्तान और तालिबान के बीच दोस्ती कराने की कोशिश की थी। पाकिस्तान को डर सता रहा है कि भारत लगातार तालिबान पर अपना प्रभाव बढ़ा रहा है। वहीं चीन को रूस का भी डर सता रहा है जो अफगानिस्तान में तेजी से पहुंच बढ़ा रहा है। हाल के दिनों में रूस ने तालिबान को लेकर कई बैठकें आयोजित की हैं। इसमें भारत को भी फायदा मिलने की उम्मीद है। चीन की नजर अफगानिस्तान में लिथियम और सोने जैसे कई ट्रिल्यन डॉलर के खजाने पर है। चीन ने बड़ी तेजी से अफगानिस्तान में निवेश बढ़ाया है। इससे पहले पाकिस्तानी मीडिया ने दावा किया था कि विदेश मंत्री इशाक डार की काबुल यात्रा के बाद तालिबानी सरकार इस बात पर सहमत हुई है कि भारत के अफगानिस्तान में बढ़ते प्रभाव को कम किया जाएगा। हालांकि पाकिस्तानी मीडिया का दावा झूठा निकला। ऑपरेशन सिंदूर के दौरान तालिबान ने पाकिस्तान का सपोर्ट नहीं किया। पाकिस्तानी राजदूत ने तालिबान सरकार से गुहार लगाई थी कि वह पहलगाम आतंकी हमले की तटस्थ जांच की इस्लामाबाद की मांग को सपोर्ट करे लेकिन काबुल की सरकार ने ऐसा नहीं किया। इससे पाकिस्तान को बड़ा झटका लगा। असल में तालिबान भी पाकिस्तानी सेना के हवाई हमलों से परेशान है। तालिबान सरकार आने के बाद पाकिस्तानी सेना के साथ कई बार उसकी लड़ाई की नौबत आ चुकी है।
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