रियाद: पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ ने सऊदी अरब की यात्रा के दौरान रणनीतिक पारस्परिक रक्षा समझौते (SMDA) पर हस्ताक्षर किए हैं। सऊदी अरब की तरफ से प्रिंस मुहम्मद बिन सलमान अल सऊद ने इसे मंजूरी दी है। इस समझौते में कहा गया है कि किसी भी देश पर आक्रमण को दोनों देशों के खिलाफ हमला माना जाएगा। ऐसे में मध्य पूर्व में भारतीय कूटनीति के लिए टेंशन बढ़ गई है। पाकिस्तान इसे अपनी बड़ी कूटनीतिक जीत के रूप में प्रस्तुत कर रहा है। हालांकि, भारत का सऊदी अरब के साथ पहले से ही रणनीतिक समझौता है। इसके बावजूद भारत ने अभी तक सधी हुई प्रतिक्रिया दी है।
भारत ने क्या कहा
भारतीय विदेश मंत्रालय (MEA) ने कहा कि उसे इस "घटनाक्रम" की जानकारी है जो "दोनों देशों के बीच एक दीर्घकालिक समझौते को औपचारिक रूप देता है"। मंत्रालय की साप्ताहिक मीडिया ब्रीफिंग में पाकिस्तान-सऊदी समझौते के बारे में पूछे जाने पर, प्रवक्ता रणधीर जायसवाल ने भारत की इस उम्मीद के बारे में बात की कि सऊदी अरब "आपसी हितों और संवेदनशीलताओं को ध्यान में रखेगा।"
क्या भारत के खिलाफ जाएगा सऊदी अरब?
वहीं, जब पाकिस्तान के रक्षा मंत्री ख्वाजा आसिफ से पूछा गया कि क्या भारत और पाकिस्तान के बीच युद्ध होने पर सऊदी अरब इसमें शामिल होगा, तो उन्होंने सीधे तौर पर भारत का जिक्र किए बिना हां में जवाब दिया। पाकिस्तान की इन उम्मीदों के बावजूद, इसे असंभव माना जा रहा है कि सऊदी अरब, भारत-पाकिस्तान संघर्ष की स्थिति में सैन्य रूप से शामिल होगा। इसका महत्वपूर्ण कारण भारत-सऊदी अरब संबंध और सौदे को लेकर बहुत कम जानकारियों के सार्वजनिक होने को माना जा रहा है। सऊदी अरब की तरफ से आधिकारिक रूप से इस सौदे को लेकर ज्यादा जानकारी साझा नहीं की गई है और ना ही पाकिस्तान की तरह किंगडम के किसी बड़े अधिकारी ने बयानबाजी की है।
पाकिस्तान-सऊदी अरब लंबे समय से कर रहे थे बात
पाकिस्तान और सऊदी अरब के बीच यह समझौता कतर पर इजरायली बमबारी के चंद दिनों बाद हुआ है। हालांकि, इसकी तैयारी लंबे समय से की जा रही थी। पाकिस्तान के उप-प्रधानमंत्री और विदेश मंत्री इशाक डार ने भी ऐसा ही संकेत दिया है। हालांकि, इस पर हस्ताक्षर निश्चित रूप से कतर पर इजरायली हमले को ध्यान में रखकर किया गया है। सऊदी अरब लंबे समय से पाकिस्तान के साथ रणनीति संबंधों को औपचारिक रूप से अमलीजामा पहनाने की कोशिश कर रहा था। हालांकि,सऊदी अरब के अधिकारी इस समझौते को दीर्घकालिक संबंधों के स्वाभाविक विकास के रूप में चित्रित करने में सावधानी बरत रहे हैं।
भारत का करीबी दोस्त है सऊदी अरब
भारत-सऊदी अरब संबंध काफी मजबूत हैं। हाल के वर्षों में सऊदी अरब ने अपनी दक्षिण एशिया नीति में भारत और पाकिस्तान को अलग-अलग डील किया है। उसने पाकिस्तान के साथ साझेदारी रखते हुए भारत के साथ अपने संबंधों को मजबूत किया है। पहलगाम आतंकवादी हमलों के बाद, जम्मू-कश्मीर में आतंकवाद की सऊदी अरब की खुलकर निंदा थी। सऊदी अरब भारत के साथ ऊर्जा, अंतरिक्ष, रक्षा और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में नजदीकी से काम कर रहा है।
दोनों देशों को एक दूसरे की जरूरत
भारत के लिए भी सऊदी अरब जरूरी पार्टनर है। ऐसे में भारत किसी भी कीमत पर सऊदी अरब के साथ सार्वजनिक रूप से संबंध तोड़ने से बचना चाहेगा। हालांकि, इसका यह अर्थ नहीं है कि यह समझौता भारत के लिए रणनीतिक चिंता का विषय नहीं है। ऐसे समय में जब भारत पहलगाम हमले के बाद ऑपरेशन सिंदूर के तहत पाकिस्तान के विरुद्ध अंतर्राष्ट्रीय समर्थन जुटाने की कोशिश कर रहा है, पाकिस्तान-सऊदी समझौता नई दिल्ली को और भी अलग-थलग कर देता है।
भारत ने क्या कहा
भारतीय विदेश मंत्रालय (MEA) ने कहा कि उसे इस "घटनाक्रम" की जानकारी है जो "दोनों देशों के बीच एक दीर्घकालिक समझौते को औपचारिक रूप देता है"। मंत्रालय की साप्ताहिक मीडिया ब्रीफिंग में पाकिस्तान-सऊदी समझौते के बारे में पूछे जाने पर, प्रवक्ता रणधीर जायसवाल ने भारत की इस उम्मीद के बारे में बात की कि सऊदी अरब "आपसी हितों और संवेदनशीलताओं को ध्यान में रखेगा।"
क्या भारत के खिलाफ जाएगा सऊदी अरब?
वहीं, जब पाकिस्तान के रक्षा मंत्री ख्वाजा आसिफ से पूछा गया कि क्या भारत और पाकिस्तान के बीच युद्ध होने पर सऊदी अरब इसमें शामिल होगा, तो उन्होंने सीधे तौर पर भारत का जिक्र किए बिना हां में जवाब दिया। पाकिस्तान की इन उम्मीदों के बावजूद, इसे असंभव माना जा रहा है कि सऊदी अरब, भारत-पाकिस्तान संघर्ष की स्थिति में सैन्य रूप से शामिल होगा। इसका महत्वपूर्ण कारण भारत-सऊदी अरब संबंध और सौदे को लेकर बहुत कम जानकारियों के सार्वजनिक होने को माना जा रहा है। सऊदी अरब की तरफ से आधिकारिक रूप से इस सौदे को लेकर ज्यादा जानकारी साझा नहीं की गई है और ना ही पाकिस्तान की तरह किंगडम के किसी बड़े अधिकारी ने बयानबाजी की है।
पाकिस्तान-सऊदी अरब लंबे समय से कर रहे थे बात
पाकिस्तान और सऊदी अरब के बीच यह समझौता कतर पर इजरायली बमबारी के चंद दिनों बाद हुआ है। हालांकि, इसकी तैयारी लंबे समय से की जा रही थी। पाकिस्तान के उप-प्रधानमंत्री और विदेश मंत्री इशाक डार ने भी ऐसा ही संकेत दिया है। हालांकि, इस पर हस्ताक्षर निश्चित रूप से कतर पर इजरायली हमले को ध्यान में रखकर किया गया है। सऊदी अरब लंबे समय से पाकिस्तान के साथ रणनीति संबंधों को औपचारिक रूप से अमलीजामा पहनाने की कोशिश कर रहा था। हालांकि,सऊदी अरब के अधिकारी इस समझौते को दीर्घकालिक संबंधों के स्वाभाविक विकास के रूप में चित्रित करने में सावधानी बरत रहे हैं।
भारत का करीबी दोस्त है सऊदी अरब
भारत-सऊदी अरब संबंध काफी मजबूत हैं। हाल के वर्षों में सऊदी अरब ने अपनी दक्षिण एशिया नीति में भारत और पाकिस्तान को अलग-अलग डील किया है। उसने पाकिस्तान के साथ साझेदारी रखते हुए भारत के साथ अपने संबंधों को मजबूत किया है। पहलगाम आतंकवादी हमलों के बाद, जम्मू-कश्मीर में आतंकवाद की सऊदी अरब की खुलकर निंदा थी। सऊदी अरब भारत के साथ ऊर्जा, अंतरिक्ष, रक्षा और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में नजदीकी से काम कर रहा है।
दोनों देशों को एक दूसरे की जरूरत
भारत के लिए भी सऊदी अरब जरूरी पार्टनर है। ऐसे में भारत किसी भी कीमत पर सऊदी अरब के साथ सार्वजनिक रूप से संबंध तोड़ने से बचना चाहेगा। हालांकि, इसका यह अर्थ नहीं है कि यह समझौता भारत के लिए रणनीतिक चिंता का विषय नहीं है। ऐसे समय में जब भारत पहलगाम हमले के बाद ऑपरेशन सिंदूर के तहत पाकिस्तान के विरुद्ध अंतर्राष्ट्रीय समर्थन जुटाने की कोशिश कर रहा है, पाकिस्तान-सऊदी समझौता नई दिल्ली को और भी अलग-थलग कर देता है।
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