ढाका: बांग्लादेश में मोहम्मद यूनुस सरकार के वरिष्ठ सलाहकार आसिफ महमूद शोजिब भुयान ने बताया है कि उनके देश में इस्लामिक रिवोल्यूशनरी आर्मी (आईआरए) की स्थापना का पहला चरण जारी रहा है। शोजिब ने सोशल मीडिया पर कहा है कि बांग्लादेश में सात केंद्रों पर 8,850 लोगों की भर्ती और ट्रेनिंग दी जा रही है। यह ट्रेनिंग पाकिस्तानी एजेंसी आईएसआई और सेना के अफसर दे रहे हैं। भुयान के इस खुलासे ने भारत की सुरक्षा चिंताओं को बढ़ा दिया है।
रिपोर्ट कहती है कि यूनुस सरकार को ऐसा संगठन चाहिए, जो देश के लिए नहीं बल्कि सरकार के प्रति वफादार हो और आईएसआई के साथ मिलकर काम करे। यही कारण है कि बांग्लादेशी सेना की जगह इस्लामिक रिवोल्यूशनरी आर्मी को लाने की तैयारी चल रही है। ऐसे में आईआरए को मार्शल आर्ट, ताइक्वांडो और जूडो की ट्रेनिंग दी जाएगी। जमात-ए-इस्लामी और आईएसआई की कठपुतली यूनुस सरकार कई महीनों से आईआरए की योजना बना रही है।
ईरान की तर्ज पर करेगा कामभारतीय अधिकारियों के अनुसार, आईआरए ईरान के इस्लामिक रिवोल्यूशनरी गार्ड कॉर्प्स (आईआरजीसी) की तर्ज पर काम करेगा। आईआरए एक अत्यधिक कट्टरपंथी संस्था होगी, जो बांग्लादेश को एक इस्लामी राज्य में बदलने में सत्ता पर काबिज लोगों की मदद करेगी। इसका निशाना भारत हो सकता है। आईआरए स्थापित हो जाने के बाद सीमा पर तनाव बहुत बढ़ सकता है।
हाल ही मेंजमात के नेतासैयद अब्दुल्ला ताहिरने न्यूयॉर्क में कहा कि जमात के 50 लाख युवा भारत से लड़ने के लिए तैयार हैं। अगर भारत बांग्लादेश में प्रवेश करता हैतो 1971 में जो बदनामी हुई थी, वह मिट जाएगी। हम खुद को सच्चे स्वतंत्रता सेनानी साबित करेंगेऔर जमात के 50 लाख लोगों का एक हिस्सा गुरिल्ला युद्ध में शामिल होगा, जबकि बाकी लोग भारत के अंदर फैलकर गजवा-ए-हिंद को लागू करेंगे।
ISI की ढाका में एंट्रीइन गतिविधियों को देखते हुए एक्सपर्ट्स का मानना है कि आईएसआई ने बांग्लादेश पर कब्जा कर लिया है। पाकिस्तान हमेशा से चाहता था कि बांग्लादेश को 1971 से पहले की स्थिति में वापस लाया जाए। यही कारण है कि शेख हसीना के सत्ता से बेदखल होने के बाद से वह इस योजना पर लगातार काम कर रहा है। पहले चरण में, सात ट्रेनिंग कैंपों में 8,850 लोगों को ट्रेनिंग दी जा रही है। इन सभी लोगों को पाकिस्तान समर्थक सेवानिवृत्त बांग्लादेशी सैन्य अधिकारी प्रशिक्षित कर रहे हैं।
बांग्लादेश में इस समय 1,60,000 सेना की संख्या है और आईआरए का मकसद सेना की संख्या से ज्यादा लोगों को ट्रेनिंग देना है। इसके अलावा, इन शिविरों में पाकिस्तानी सेना और आईएसआई के अधिकारी अक्सर आते-जाते रहते हैं। पाकिस्तानी सेना और आईएसआई के कमांडर ही इस ट्रेनिंग के लिए पैसे और हथियार मुहैया करा रहे हैं।
यूनुस ने खोला रास्तामुहम्मद यूनुस की ओर से पाकिस्तान के लिए समुद्री मार्ग खोले जाने के बाद से हथियार और गोला-बारूद बड़ी मात्रा में बांग्लादेश पहुंच रहे हैं। ये सभी वर्तमान में विश्वविद्यालयों में जमा किए जा रहे हैं, जिन पर बड़े पैमाने पर जमात का नियंत्रण है। जरूरत के अनुसार, इन हथियारों और गोला-बारूद को आईआरए के ट्रेनिंग कैंप में खुलेआम पहुंचाया जा रहा है। जमात समर्थित संस्थाएं आईआरए के संबंध में भी अपने इरादों के बारे में खुलकर बात कर रही हैं।
जमात और आईएसआई के इशारे पर यूनुस सरकार बांग्लादेश में सेना और डीजीएफआई दोनों को बंद करने की कोशिश कर रही है। बांग्लादेश में हो रही हालिया घटनाएं सेना के शीर्ष अधिकारियों और सत्तारूढ़ दल के बीच मतभेद की ओर इशारा कर रही हैं। वहां की अदालतें कई सेना और डीजीएफआई कर्मियों को गिरफ्तार करने के आदेश दे रही हैं।
हालांकि कोर्ट ने कहा है कि ये लोग अत्याचारों में लिप्त हैं। हालांकि वास्तव में उन लोगों को निशाना बनाया गया है, वे सभी शेख हसीना के करीबी माने जाते हैं। अधिकारियों का कहना है कि इन घटनाक्रमों ने बांग्लादेशी सेना के भीतर गहरी दरार पैदा कर दी है, साथ ही कई लोग आईआरए की स्थापना के पक्ष में हैं।
रिपोर्ट कहती है कि यूनुस सरकार को ऐसा संगठन चाहिए, जो देश के लिए नहीं बल्कि सरकार के प्रति वफादार हो और आईएसआई के साथ मिलकर काम करे। यही कारण है कि बांग्लादेशी सेना की जगह इस्लामिक रिवोल्यूशनरी आर्मी को लाने की तैयारी चल रही है। ऐसे में आईआरए को मार्शल आर्ट, ताइक्वांडो और जूडो की ट्रेनिंग दी जाएगी। जमात-ए-इस्लामी और आईएसआई की कठपुतली यूनुस सरकार कई महीनों से आईआरए की योजना बना रही है।
ईरान की तर्ज पर करेगा कामभारतीय अधिकारियों के अनुसार, आईआरए ईरान के इस्लामिक रिवोल्यूशनरी गार्ड कॉर्प्स (आईआरजीसी) की तर्ज पर काम करेगा। आईआरए एक अत्यधिक कट्टरपंथी संस्था होगी, जो बांग्लादेश को एक इस्लामी राज्य में बदलने में सत्ता पर काबिज लोगों की मदद करेगी। इसका निशाना भारत हो सकता है। आईआरए स्थापित हो जाने के बाद सीमा पर तनाव बहुत बढ़ सकता है।
हाल ही मेंजमात के नेतासैयद अब्दुल्ला ताहिरने न्यूयॉर्क में कहा कि जमात के 50 लाख युवा भारत से लड़ने के लिए तैयार हैं। अगर भारत बांग्लादेश में प्रवेश करता हैतो 1971 में जो बदनामी हुई थी, वह मिट जाएगी। हम खुद को सच्चे स्वतंत्रता सेनानी साबित करेंगेऔर जमात के 50 लाख लोगों का एक हिस्सा गुरिल्ला युद्ध में शामिल होगा, जबकि बाकी लोग भारत के अंदर फैलकर गजवा-ए-हिंद को लागू करेंगे।
ISI की ढाका में एंट्रीइन गतिविधियों को देखते हुए एक्सपर्ट्स का मानना है कि आईएसआई ने बांग्लादेश पर कब्जा कर लिया है। पाकिस्तान हमेशा से चाहता था कि बांग्लादेश को 1971 से पहले की स्थिति में वापस लाया जाए। यही कारण है कि शेख हसीना के सत्ता से बेदखल होने के बाद से वह इस योजना पर लगातार काम कर रहा है। पहले चरण में, सात ट्रेनिंग कैंपों में 8,850 लोगों को ट्रेनिंग दी जा रही है। इन सभी लोगों को पाकिस्तान समर्थक सेवानिवृत्त बांग्लादेशी सैन्य अधिकारी प्रशिक्षित कर रहे हैं।
बांग्लादेश में इस समय 1,60,000 सेना की संख्या है और आईआरए का मकसद सेना की संख्या से ज्यादा लोगों को ट्रेनिंग देना है। इसके अलावा, इन शिविरों में पाकिस्तानी सेना और आईएसआई के अधिकारी अक्सर आते-जाते रहते हैं। पाकिस्तानी सेना और आईएसआई के कमांडर ही इस ट्रेनिंग के लिए पैसे और हथियार मुहैया करा रहे हैं।
यूनुस ने खोला रास्तामुहम्मद यूनुस की ओर से पाकिस्तान के लिए समुद्री मार्ग खोले जाने के बाद से हथियार और गोला-बारूद बड़ी मात्रा में बांग्लादेश पहुंच रहे हैं। ये सभी वर्तमान में विश्वविद्यालयों में जमा किए जा रहे हैं, जिन पर बड़े पैमाने पर जमात का नियंत्रण है। जरूरत के अनुसार, इन हथियारों और गोला-बारूद को आईआरए के ट्रेनिंग कैंप में खुलेआम पहुंचाया जा रहा है। जमात समर्थित संस्थाएं आईआरए के संबंध में भी अपने इरादों के बारे में खुलकर बात कर रही हैं।
जमात और आईएसआई के इशारे पर यूनुस सरकार बांग्लादेश में सेना और डीजीएफआई दोनों को बंद करने की कोशिश कर रही है। बांग्लादेश में हो रही हालिया घटनाएं सेना के शीर्ष अधिकारियों और सत्तारूढ़ दल के बीच मतभेद की ओर इशारा कर रही हैं। वहां की अदालतें कई सेना और डीजीएफआई कर्मियों को गिरफ्तार करने के आदेश दे रही हैं।
हालांकि कोर्ट ने कहा है कि ये लोग अत्याचारों में लिप्त हैं। हालांकि वास्तव में उन लोगों को निशाना बनाया गया है, वे सभी शेख हसीना के करीबी माने जाते हैं। अधिकारियों का कहना है कि इन घटनाक्रमों ने बांग्लादेशी सेना के भीतर गहरी दरार पैदा कर दी है, साथ ही कई लोग आईआरए की स्थापना के पक्ष में हैं।
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