देश में किसी भी विवाद या कानून के विरोध में जब प्रदर्शन होते हैं, तो अक्सर यह देखा जाता है कि अधिकतर प्रदर्शनकारियों को खुद नहीं पता होता कि वे किस मुद्दे का विरोध कर रहे हैं। बस भीड़ का हिस्सा बनकर प्रदर्शन में शामिल हो जाना जैसे एक चलन बन गया है। गाजियाबाद रेलवे स्टेशन पर हाल ही में इसी तरह का एक मामला देखने को मिला, जहां विरोध की अति ने इतिहास की सच्चाई को ही धुंधला कर दिया।
बहादुर शाह जफर की जगह औरंगजेब समझ बैठे प्रदर्शनकारीगाजियाबाद रेलवे स्टेशन पर हिंदू रक्षा दल से जुड़े कुछ लोग पहुंचे और स्टेशन पर लगी बहादुर शाह जफर की पेंटिंग पर कालिख पोत दी। उनका दावा था कि उन्होंने औरंगजेब के चित्र पर कालिख पोती है। लेकिन हकीकत यह है कि तस्वीर बहादुर शाह जफर की थी, जो भारत के अंतिम मुगल शासक थे और 1857 की आजादी की पहली लड़ाई में उनका नाम प्रमुखता से जुड़ा रहा।
सिर्फ चर्चा में आने की कोशिशइस हरकत का एकमात्र उद्देश्य वीडियो बनाकर सोशल मीडिया पर प्रचार पाना था। लेकिन इस गलती ने उन्हें खुद सवालों के घेरे में ला खड़ा किया। विपक्ष ने इस मुद्दे पर तीखी प्रतिक्रिया दी। कांग्रेस प्रवक्ता सुप्रिया श्रीनेत ने एक्स पर लिखा, “कालिख पोतने गए थे औरंगजेब पर, पोत आए बहादुर शाह जफर पर। इन्हें ये भी नहीं मालूम कि बहादुर शाह जफर ने 1857 की आजादी की लड़ाई लड़ी थी।”
इतिहास को जानना जरूरी, विरोध से पहले समझना जरूरीजब ज़ी न्यूज़ की टीम ने संगठन से जुड़े लोगों से सवाल किया कि जब विरोध औरंगजेब का है, तो बहादुर शाह जफर की तस्वीर पर कालिख क्यों पोती, तो जवाब मिला—“हैं तो सब मुगलों की औलाद ही।” यही मानसिकता बताती है कि विरोध अब विचारधारा से अधिक भीड़ की मानसिकता बन चुकी है, जिसमें न सही-गलत का फर्क किया जाता है और न ऐतिहासिक समझ की जरूरत महसूस होती है।
बहादुर शाह जफर की भूमिका पर बहस फिर शुरूइस घटना के बाद सोशल मीडिया पर एक बार फिर बहादुर शाह जफर की भूमिका पर बहस छिड़ गई है। कुछ लोग सवाल करते हैं कि अगर उन्होंने आजादी की लड़ाई लड़ी थी, तो अंग्रेजों से पेंशन क्यों ली? और जब तात्या टोपे को मृत्युदंड मिला, तो उन्हें सिर्फ देश निकाला क्यों दिया गया?
इतिहासकारों की रायइतिहासकारों का मत है कि बहादुर शाह जफर 1857 की क्रांति में मुख्य भूमिका में नहीं थे, लेकिन उनका नाम प्रतीकात्मक रूप से जुड़ा था। उन्होंने बगावत को नेतृत्व जरूर दिया, लेकिन उनका उद्देश्य संपूर्ण भारत की आजादी नहीं, बल्कि दिल्ली और अपनी रियासत को बचाना ज्यादा था।
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