एक समय था जब हमारे देश के लाखों युवाओं की आंखों में एक ही सपना होता था - पढ़ाई पूरी करो,बैग पैक करो और नौकरी के लिएदिल्ली,मुंबई,या बेंगलुरुजैसे किसी बड़े शहर निकल जाओ। ऊंची-ऊंची इमारतें,तेज रफ्तार जिंदगी और बड़े-बड़े पैकेज... तरक्की का दूसरा नाम मानो यही शहर हुआ करते थे।लेकिन अब,कहानी बदल रही है। हवा का रुख पलट चुका है।एक ताजा रिपोर्ट ने उस सच्चाई को सामने ला दिया है जिसे कई लोग महसूस तो कर रहे थे,पर यकीन नहीं कर पा रहे थे। रिपोर्ट के मुताबिक,नौकरी के नए मौके पैदा करने के मामले में अब बड़े-बड़े महानगर पिछड़ रहे हैं,और बाजी मार रहे हैं भारत केछोटे शहर (टियर-2और टियर-3शहर)।तो आखिर महानगरों का जादू क्यों फीका पड़ रहा है?इस बड़े औरsilencieuxबदलाव के पीछे की वजहें बहुत ही दिलचस्प और हमारी-आपकी जिंदगी से जुड़ी हुई हैं:‘वर्क फ्रॉम होम’वाली क्रांति:कोरोना महामारी ने हमें एक चीज बहुत अच्छी तरह सिखा दी - अच्छी नौकरी करने के लिए किसी बड़े शहर के महंगे ऑफिस में बैठना जरूरी नहीं है। अब कंपनियां भी यह समझ चुकी हैं कि टैलेंट किसी शहर का मोहताज नहीं होता।कंपनियां भी हो गई हैं स्मार्ट:बड़ी कंपनियों को भी अब यह समझ आ गया है कि छोटे शहरों में ऑफिस खोलने में फायदा ही फायदा है। वहां किराया सस्ता होता है,आने-जाने का खर्च कम होता है और कर्मचारी भी ज्यादा खुश रहते हैं।बेहतर जिंदगी की चाहत:अब युवा पीढ़ी सिर्फ‘पैकेज’नहीं,बल्कि‘पीस ऑफ माइंड’ (मन की शांति) भी ढूंढ रही है। छोटे शहरों में उन्हें वो सब मिल रहा है जो महानगरों ने छीन लिया था - साफ हवा,कम ट्रैफिक,परिवार का साथ,और कम खर्च में बेहतर लाइफस्टाइल।बदलते छोटे शहर:अब छोटे शहर भी‘छोटे’नहीं रहे। शानदार हाईवे,तेज इंटरनेट और हर तरह की आधुनिक सुविधाओं ने इन शहरों को रहने और काम करने के लिए एक बेहतरीन जगह बना दिया है।कौन हैं ये नए‘हीरो’शहर?इस दौड़ मेंलखनऊ,जयपुर,चंडीगढ़,इंदौर,कोयंबटूर और विशाखापत्तनमजैसे शहर सबसे आगे निकल रहे हैं।यह सिर्फ एक ट्रेंड नहीं है,यह एक नई आर्थिक और सामाजिक क्रांति है। यह उस भारत की कहानी है जहां अब तरक्की का सपना पूरा करने के लिए अपना घर,अपना शहर और अपनी जड़ें छोड़ने की जरूरत नहीं है।
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