Newsindia live,Digital Desk: महाभारत में एक अत्यंत मर्मस्पर्शी और धर्म संकट से भरी घटना है द्रौपदी का चीर हरण यह घटना तब घटी जब पांडवों ने दुर्योधन के साथ जुए के खेल में अपना सब कुछ हार दिया था युधिष्ठिर ने न केवल अपना राज्य संपत्ति बल्कि अपने भाइयों और स्वयं द्रौपदी को भी दांव पर लगा दिया था जब युधिष्ठिर द्रौपदी को भी हार गए तो दुर्योधन के छोटे भाई दुशासन को आदेश मिला कि वह द्रौपदी को अपमानित करे और उसके वस्त्र खींचकर उसे भरी सभा में ले आएकौरवों की सभा में द्रौपदी का अपमान किया जाने लगा भीष्म पितामह द्रोणाचार्य और विदुर जैसे ज्ञानी और धर्मपरायण लोग भी उस समय असहाय खड़े थे कोई द्रौपदी की सहायता के लिए आगे नहीं आया जब द्रौपदी ने चारों ओर से स्वयं को असहाय पाया तो उन्होंने पूर्ण विश्वास और भक्ति के साथ भगवान श्रीकृष्ण को पुकारा उनके हृदय की गहराइयों से निकली यह पुकार तुरंत कृष्ण तक पहुंचीजैसे ही दुशासन ने द्रौपदी की साड़ी खींचना शुरू किया भगवान श्रीकृष्ण ने अपनी माया से उसे अनंत कर दिया दुशासन साड़ी खींचता गया पर वह समाप्त नहीं हुई साड़ी लंबी होती गई और द्रौपदी की लज्जा बच गई यह कृष्ण की ऐसी अलौकिक शक्ति का प्रदर्शन था जिसने सभी को आश्चर्यचकित कर दिया और धर्म की रक्षा हुई इस घटना के बाद कृष्ण को वस्त्रपूर्णा नाम से भी जाना जाने लगाद्रौपदी के चीर हरण की यह घटना महाभारत युद्ध का एक प्रमुख कारण बनी इसने पांडवों के भीतर बदले की आग प्रज्वलित की और अन्याय पर धर्म की विजय की नींव रखी यह प्रकरण हमें सिखाता है कि जब हर तरफ से आशा समाप्त हो जाती है तब ईश्वर ही एकमात्र सहारा होते हैं और सच्ची श्रद्धा का फल अवश्य मिलता है
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