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महाराणा प्रताप की आवश्यकता कल भी थी, आज भी है और कल भी रहेगी – हुकुमचंद सांवला

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उदयपुर, 26 सितंबर (Udaipur Kiran News) .

महाराणा प्रताप की आवश्यकता कल भी थी, आज भी है और कल भी रहेगी. उनके जैसे स्वाभिमानी, मातृभूमि को समर्पित, राष्ट्र को सर्वोपरि रखने वाले वीरों से हमें प्रेरणा लेनी होगी, उनके आदर्शों को आत्मसात करना होगा, अन्यथा स्वतंत्रता का उजास ढलती हुई सांझ में बदल जाएगा.

यह आह्वान विश्व हिन्दू परिषद की अखिल Indian कार्यकारिणी के सदस्य हुकुमचंद सांवला ने शुक्रवार को यहां प्रताप गौरव केन्द्र ‘राष्ट्रीय तीर्थ’ में दिवेर विजय दिवस के अवसर पर आयोजित सभा को संबोधित करते हुए किया. धर्म की जय हो, अधर्म का नाश हो, विश्व का कल्याण हो, प्राणियों में सद्भाव हो, के उद्घोष से आरंभ अपने ओजस्वी उद्बोधन से उन्होंने शौर्य, धर्म और राष्ट्रभक्ति को परिभाषित किय.

मुख्य वक्ता के रूप में सांवला ने कहा कि भगवान राम ने जिस कालखंड में रावण और अन्य आतताइयों का अंत कर धर्म की स्थापना की थी, वही कार्य महाराणा प्रताप ने अपने युग में किया. उन्होंने कहा कि सनातन धर्म आज तक न रावण और कंस से मिट सका, न ही आततायियों के अत्याचार से समाप्त हुआ. यह सनातन धर्म संयुक्त हिन्दू परिवार की व्यवस्था और उसकी शक्ति से आज भी सुरक्षित है और भविष्य में भी रहेगा.

उन्होंने महाराणा प्रताप को भारत की आत्मा बताया और कहा कि प्रताप केवल इतिहास के पन्नों में नहीं, बल्कि हमारे प्राणों में बसे हुए हैं. सांवला ने प्रताप और अकबर के वंश की तुलना करते हुए कहा कि महाराणा प्रताप के वंशजों का आज भी विश्व में सम्मान है, उनके प्रति आदर है.

उन्होंने कहा कि महाराणा प्रताप ने अत्याचारियों के खिलाफ जनसंघर्ष खड़ा किया और मात्र 57 वर्ष के जीवनकाल में वे ऐसे महान कार्य कर गए जिनकी बदौलत मेवाड़ का गौरव विश्वविख्यात हुआ. महाराणा प्रताप और छत्रपति शिवाजी को एक ही राजवंश का बताते हुए सांवला ने कहा कि दोनों वीरों ने भगवान राम के पूर्वजों से चली आ रही परंपरा को आगे बढ़ाया और इसी कारण भारत की संस्कृति अक्षुण्ण बनी रही. उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि छापामार युद्ध की रणनीति मेवाड़ की ही देन है, जिसे बाद में छत्रपति शिवाजी ने प्रभावी रूप से अपनाया.

इतिहास का उल्लेख करते हुए उन्होंने कहा कि हल्दीघाटी युद्ध में महाराणा प्रताप को पराजित बताना इतिहासकारों की भूल और अन्याय है. वस्तुतः महाराणा प्रताप उस युद्ध में विजयी हुए थे. उन्होंने कहा कि स्याही से लिखे शब्द बदले जा सकते हैं, किंतु पत्थर पर उकेरा गया वाक्य कभी नहीं मिटाया जा सकता. यही कारण है कि महाराणा प्रताप का नाम आज भी अक्षुण्ण है.

सांवला ने प्रताप की वीरता का उदाहरण देते हुए बहलोल खान का जिक्र किया, जो सात फीट आठ इंच लंबा था और जिसे देखकर कई राजा युद्ध से पीछे हट जाते थे. लेकिन प्रताप ने उसे घोड़े समेत काटकर अपने अदम्य साहस और क्षमता का परिचय दिया. उन्होंने कहा कि महाराणा प्रताप ने यह भी समझ लिया था कि मुगल सेना पराजित होकर भी पलटवार करने लौटेगी, इसलिए उन्होंने राष्ट्र और धर्म की रक्षा के लिए हर समय सावधान रहने की नीति अपनाई.

सांवला ने कहा कि महाराणा प्रताप ने उनके पास विभिन्न प्रस्ताव लेकर आने वाले मुगलों के दूतों को भी स्पष्ट भाषा में उत्तर दिया कि धर्म और वस्त्र कायर बदला करते हैं.

इससे पूर्व, मां आद्याशक्ति के समक्ष दीप प्रज्वलन के साथ आरंभ हुए कार्यक्रम में कार्यक्रम संयोजक अशोक सिंह मेतवाला ने स्वागत उद्बोधन में कहा कि यह मेवाड़ की धरा ही है जिसने इतिहास की धारा को बदल दिया. दिवेर विजय दिवस एक नए राष्ट्र निर्माण का बिगुल है. यह आयोजन मेवाड़ के गौरवशाली इतिहास को नई पीढ़ी तक पहुंचाने का सशक्त माध्यम सिद्ध होगा.

कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए वीर शिरोमणि महाराणा प्रताप समिति के अध्यक्ष प्रो. भगवती प्रकाश शर्मा ने महाराणा प्रताप के संघर्ष की गाथा का वर्णन किया. अतिथियों का स्वागत वीर शिरोमणि महाराणा प्रताप समिति के पदाधिकारी सुभाष भार्गव, जगदीश आमेटा, अशोक पुरोहित ने किया.

अंत में प्रताप गौरव केन्द्र के निदेशक अनुराग सक्सेना ने धन्यवाद ज्ञापित करते हुए कहा कि दिवेर का युद्ध इतिहास में “अंतिम संघर्ष” के रूप में दर्ज है. सक्सेना ने उपस्थित जनों से आह्वान किया कि महाराणा प्रताप को जन-जन तक पहुंचाने के इस पुनीत कार्य के लिए सभी निरंतर प्रयासरत रहें. उन्होंने विशेष रूप से सुझाव दिया कि अधिक से अधिक स्कूली एवं महाविद्यालयीन विद्यार्थियों में जागरूकता लाना ही इन आयोजनों की वास्तविक सार्थकता सिद्ध करेगा.

कार्यक्रम में दिवेर से आए महाराणा प्रताप विजय स्मारक समिति के पदाधिकारियों उपाध्यक्ष चन्द्रसिंह चौहान, मंत्री कालूसिंह चौहान, सरपंच भंवरसिंह चौहान, व्यवस्थापक शांतिलाल गर्ग, सदस्य ज्ञानेंद्र सिंह गहलोत आदि ने मुख्य वक्ता हुकुमचंद सांवला का स्मारक चित्र भेंट कर सम्मान किया. अंत में राष्ट्रगान के साथ कार्यक्रम का समापन हुआ. इस अवसर पर आयोजित प्रदर्शनी को उपस्थित सभी लोगों ने सराहा और कहा कि इस प्रकार के आयोजन नई पीढ़ी में ऐतिहासिक चेतना जगाने का माध्यम बनते हैं.

दिवेर का हर कोना बलिदान का साक्षी

कार्यक्रम के विशेष सत्र में प्रताप गौरव शोध केन्द्र के अधीक्षक डॉ. विवेक भटनागर ने प्रताप गौरव केन्द्र और Rajasthan विद्यापीठ के साझे में दिवेर पर किए गए ऐतिहासिक व पुरातात्विक सर्वेक्षण की रिपोर्ट को पीपीटी के माध्यम से प्रस्तुत किया. उन्होंने दिवेर निवासी चन्दन सिंह द्वारा बनाए गए नक्शे का उपयोग किया, जिसमें युद्ध क्षेत्र, नदी-नाले, दुर्ग और चौकियों का स्पष्ट विवरण अंकित किया गया है. इस नक्शे ने दिवेर की भौगोलिक स्थिति और उस समय के युद्ध की रणनीतिक महत्ता को प्रभावी ढंग से दर्शाया गया है. डॉ. भटनागर ने बताया कि दिवेर क्षेत्र का हर कोना वीरता और बलिदान की गाथाओं से जुड़ा है. चेता वह स्थान है जहां से युद्ध क्षेत्र की दिशा स्पष्ट होती है. चेता से आगे अंतालगढ़ है, जो आज एकल व्यक्ति गांव के रूप में जाना जाता है. उन्होंने उल्लेख किया कि पूरा क्षेत्र सघन वन क्षेत्र रहा है, जिसने महाराणा प्रताप की छापामार युद्ध नीति को सफलता दिलाने में अहम भूमिका निभाई. छापली में वीरों का प्राचीन स्मारक आज भी उनकी शौर्यगाथा सुनाता है. सूरजकुंड की चौकी उस समय का एक प्रमुख सैन्य ठिकाना था, जहां से सीधे मारवाड़ में प्रवेश किया जाता था. वहीं राताखेत क्षेत्र में सरकार ने स्मारक बनाकर इस इतिहास को संरक्षित किया है.

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(Udaipur Kiran) / सुनीता

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