नई दिल्ली/पटना, 14 अप्रैल . ब्रिटिश लिंगुआ के संस्थापक, अंग्रेज़ी साहित्यकार, लेखक और समाजसेवी डॉ. बीरबल झा ने बाबा साहेब डॉ. अंबेडकर को एक दूरदर्शी नेता और आधुनिक भारत के संविधान के प्रधान शिल्पकार के रूप में याद किया.
डॉ. बीरबल झा ने सोमवार को अंबेडकर जयंती के अवसर पर यहां भारतीय संविधान: आदर्श और डॉ. भीमराव अंबेडकर का योगदान विषय पर आयोजित संगोष्ठी को संबोधित करते हुए यह बात कही. . डॉ. झा ने डॉ. बी.आर. अंबेडकर को श्रद्धांजलि देने के अपरांत अपने संबोधन में संविधान के मूल्यों और डॉ. अंबेडकर के योगदानपर ज़ोर दिया.
डॉ. झा ने अंबेडकर को एक दूरदर्शी नेता और आधुनिक भारत के संविधान के प्रधान शिल्पकार के रूप में स्मरण किया. उन्होंने बताया कि कैसे बाबासाहेब ने सामाजिक भेदभाव को मात देकर वंचितों के अधिकारों की पैरवी की और एक समावेशी एवं न्यायपूर्ण भारत की नींव रखी. डॉ. झा ने भारतीय संविधान पर बोलते हुएउसके मूल सिद्धांतों, न्याय स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व को रेखांकित किया, जो प्रस्तावना में निहित हैं.
उन्होंने मौलिक अधिकारों, नीति-निर्देशक तत्वों और मूल कर्तव्यों को लोकतंत्र की संरचना में परिवर्तनकारी बताया. डॉ. अंबेडकर को उद्धृत करते हुए उन्होंने कहा, “राजनीतिक लोकतंत्र तब तक टिक नहीं सकता जब तक उसके आधार में सामाजिक लोकतंत्र न हो.” अपने संबोधन में डॉ. झा ने लोकतांत्रिक आदर्शों को जीवन के हर क्षेत्र में लागू करने की आवश्यकता पर बल दिया.
डॉ. झा ने डॉ. भीमराव अंबेडकर के अंग्रेज़ी शिक्षा के पक्ष में विचारों को भी सामने रखा, जिसे उन्होंने शोषित वर्गों के सशक्तिकरण का माध्यम माना. “शिक्षा के बिना स्वतंत्रता निरर्थक है,” अंबेडकर ने कहा था, जिसे डॉ. झा ने भी दोहराते हुए भाषा को गरिमा, अवसर और सामाजिक उत्थान का माध्यम बताया. इसके साथ ही समकालीन चुनौतियों की चर्चा करते हुए डॉ. झा ने संवैधानिक जागरूकता और सामाजिक एकता की अपील की, उन्होंने नागरिकों से लोकतांत्रिक मूल्यों की रक्षा करने का आह्वान किया.
डॉ. झा ब्रिटिश लिंगुआ के माध्यम से निरंतर शैक्षिक और सांस्कृतिक सशक्तिकरण के लिए कार्य कर रहे हैं. उन्होंने कहा कि बाबासाहेब के आह्वान “शिक्षित बनो, संघर्ष करो, संगठित हो” को दोहराया और विकसित भारत की दिशा में बढ़ने का संकल्प लिया, उन्होंने कहा कि एक ऐसा भारत जो संविधान के आदर्शों पर आधारित हो. इस संगोष्ठी का समापन संविधान की वर्तमान प्रासंगिकता पर जीवंत चर्चा के साथ हुआ.
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/ प्रजेश शंकर
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