शिमला, 18 अप्रैल . पूर्व मुख्यमंत्री एवं पूर्व केन्द्रीय मंत्री शांता कुमार ने एक बार फिर शानन बिजली परियोजना को लेकर हिमाचल प्रदेश के साथ हो रहे ऐतिहासिक अन्याय का मुद्दा उठाया है. उन्होंने कहा कि पूरे भारत में शायद ही किसी राज्य के साथ इतना लंबा और गंभीर अन्याय हुआ हो, जितना पिछले लगभग 60 वर्षों से हिमाचल प्रदेश के साथ हो रहा है.
शांता कुमार ने शनिवार काे एक बयान में कहा कि हिमाचल की धरती और पानी से शानन बिजली घर में बिजली पैदा हो रही है लेकिन इसकी मालिकाना हक अब भी पंजाब के पास है. उन्होंने 1966 के पंजाब पुनर्गठन अधिनियम का हवाला देते हुए कहा कि उस कानून के तहत स्पष्ट निर्देश था कि “सांझे पंजाब की जो संपत्ति जिस नए राज्य में स्थित होगी, वह संपत्ति उसी राज्य की मानी जाएगी.” पुनर्गठन के बाद मंडी जिला और जोगिंदरनगर हिमाचल का हिस्सा बने, जहां शानन बिजली घर स्थित है. इसलिए यह बिजली परियोजना स्वाभाविक रूप से हिमाचल प्रदेश की होनी चाहिए थी.
उन्होंने बताया कि मुख्यमंत्री रहते हुए उन्होंने केंद्र सरकार से कई बार शानन परियोजना को हिमाचल को सौंपने की मांग की. 1977 में उनके प्रयासों से तत्कालीन प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई ने पंजाब, हरियाणा और हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्रियों की एक बैठक बुलाई थी. बैठक में शांता कुमार द्वारा रखे गए तर्कों का किसी के पास जवाब नहीं था. बैठक के बाद केंद्र सरकार ने सुब्रमण्यम कमेटी गठित की, जिसने हिमाचल के दावे को उचित ठहराया लेकिन सरकार बदलते ही मामला ठंडे बस्ते में चला गया.
पूर्व मुख्यमंत्री ने यह भी कहा कि भाखड़ा डैम और चंडीगढ़ में भी हिमाचल प्रदेश का 7.19 प्रतिशत हिस्सा है, जो अभी तक नहीं मिला है. उन्होंने याद दिलाया कि मुख्यमंत्री रहते हुए वे हिमाचल के 5000 प्रतिनिधियों को लेकर हिमाचल यात्रा पर दिल्ली पहुंचे थे और संसद के सामने धरना दिया था. इस धरने में वरिष्ठ नेता अटल बिहारी वाजपेयी और लालकृष्ण आडवाणी ने भी हिस्सा लिया था.
शांता कुमार ने हिमाचल सरकार और विपक्ष से अपील की है कि वे शानन बिजली परियोजना को लेकर एकजुट होकर संघर्ष करें. उन्होंने कहा कि यह मामला सर्वोच्च न्यायालय में पूरी ताकत से उठाया जाना चाहिए और सभी नेता प्रधानमंत्री से मिलकर हिमाचल को उसका हक दिलवाएं. यह मुद्दा अब सिर्फ बिजली परियोजना का नहीं, बल्कि हिमाचल की अस्मिता और अधिकारों का बन गया है.
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शुक्ला
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