मक्का मुकर्रमा की पवित्र मस्जिद-ए-हराम में हाल ही में एक ऐसा नज़ारा देखने को मिला, जिसने हर किसी का ध्यान खींच लिया। कई जनाज़ों की नमाज़ अदा की गई, लेकिन एक जनाज़ा सबसे अलग था। इस जनाज़े में मृतक का चेहरा और सिर खुला हुआ था। लोग हैरान थे कि आखिर ऐसा क्यों? क्या थी इसकी वजह?
इस सवाल का जवाब जानने के लिए हमें शरीयत के उन खास नियमों को समझना होगा, जो एहराम की हालत में इंतकाल करने वालों के लिए हैं।
शरीयत का खास हुक्मजब कोई शख्स हज या उमरा के लिए एहराम की हालत में दुनिया से रुख्सत हो जाता है, तो उसका जनाज़ा और कफन आम जनाज़ों से थोड़ा अलग होता है। शरीयत के मुताबिक, ऐसे शख्स का:
- सिर और चेहरा ढका नहीं जाता।
- उस पर कोई खुशबू या इत्र नहीं लगाया जाता।
- उसे दो साधारण कपड़ों में कफन दिया जाता है।
यह नियम रसूलुल्लाह ﷺ की हदीस से लिया गया है, जो इस्लाम में एक खास अहमियत रखता है।
हदीस में क्या है सबूत?सहीह बुखारी (हदीस नं. 1267) में हजरत अब्दुल्लाह बिन अब्बास रजि. फरमाते हैं:
“हम नबी करीम ﷺ के साथ थे, जब एक ऊँटनी ने एक शख्स की गर्दन तोड़ दी। वह शख्स एहराम की हालत में था। नबी करीम ﷺ ने फरमाया:
‘उसे बेर के पत्तों और पानी से गुस्ल दो, दो कपड़ों में कफन दो, कोई खुशबू न लगाओ और उसका सिर न ढको, क्योंकि कयामत के दिन अल्लाह तआला उसे इस हाल में उठाएंगे कि वह तलबिया पढ़ रहा होगा।’”
यह हदीस साफ बताती है कि एहराम की हालत में मरने वाले का चेहरा खुला रखना शरीयत का हिस्सा है।
इस नियम की हिकमतइस हुक्म के पीछे की हिकमत बेहद खूबसूरत है। अल्लाह तआला ऐसे बंदे को कयामत के दिन उसी हाल में उठाएंगे, जिसमें उसने आखिरी सांस ली थी। एहराम की हालत में तलबिया (ल्ब्बैक अल्लाहुम्मा ल्ब्बैक) पढ़ना हज और उमरा का सबसे अहम हिस्सा है। इसलिए शरीयत ने हुक्म दिया कि ऐसे शख्स का सिर और चेहरा खुला रहे, ताकि यह निशानी बरकरार रहे।
मक्का का यह वाकयामस्जिद-ए-हराम में जिस जनाज़े ने सबका ध्यान खींचा, उसकी वजह यही थी कि मृतक एहराम की हालत में दुनिया से गया था। इसलिए उसका चेहरा नहीं ढका गया। यह नजारा हमें याद दिलाता है कि हमारी आखिरी सांस का हाल भी हमारी इबादत से जुड़ा होता है। यह वाकया हर मुसलमान के लिए एक सबक है कि इबादत की हालत में अल्लाह के करीब होना कितना खास है।
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